नवरात्रि पर क्या पूजा और कन्या भोज का खास महत्व रहता है। इसे कुमारी या कुमारिका पूजा भी कहते हैं। सप्तमी, अष्टमी और नवमी के दिन यह पूजा खासतौर पर होती है। आओ जानते हैं कि कैसे करें क्या पूजा और क्या है इस पूजा की कथा।

कैसे करें कन्या पूजा :
अष्टमी या नवमी के दिन कन्या भोज के पहले कन्या पूजन किया जाता है। इस दिन कम से कम 9 कन्याओं को आमंत्रित करें। धार्मिक मान्यता के अनुसार 2 से 10 वर्ष की आयु की कन्या कुमारी पूजा के लिए उपयुक्त होती हैं।
सभी कन्याओं को कुश के आसान पर या लकड़ी का पाट पर बैठाकर उनके पैरों को पानी या दूध से धोएं। फिर पैर धोने के बाद उनके पैरों में महावार लगाकर उनका श्रृंगार करें और फिर उनके माथे पर अक्षत, फूल और कुमकुम का तिलक लगाकर उनकी पूजा और आरती करें।
इसके बाद सभी कन्याओं को भोजन कराएं। साथ ही एक लांगुरिया (छोटा लड़का) को खीर, पूरी, प्रसाद, हलवा, चने की सब्जी आदि खिलाएं।
भोजन कराने के बाद उन्हें दक्षिणा दें, उन्हें रूमाल, चुनरी, फल और खिलौने देकर उनका चरण स्पर्श करके उन्हें खुशी खुशी से विदा करें। कन्याओं को तिलक करके, हाथ में मौली बांधकर, गिफ्ट दक्षिणा आदि देकर आशीर्वाद लिया जाता है, फिर उन्हें विदा किया जाता है।
क्या पूजा और भोज कथा : एक कथा के अनुसार माता के भक्त नि:संतान पंडित श्रीधर ने एक दिन कुमारी कन्याओं को भोजन पर आमंत्रित किया। वहां पर मातारानी कन्या के रूप में आकर उनक कन्याओं के बीच बैठ गई। सभी कन्या तो भोजन करने चली गई परंतु मारारानी वहीं बैठी रहीं। उन्होंने पंडित श्रीधर से कहा कि तुम एक भंडारा रखो, भंडारे में पूरे गांव को आमंत्रित करो। इस भंडारे में भैरवनाथ भी आया और वहीं उसके अंत का प्रारंभ भी हुआ।
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