कोरोना संकट: भारत में हर दिन नए केस की संख्या ऊंचाई के रिकॉर्ड बना रही

कोरोना वायरस महामारी के धीमा पड़ने के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं, वहीं भारत में हर दिन नए केस की संख्या ऊंचाई के रिकॉर्ड बना रही है. ऐसे में राज्यों से टेस्टिंग बढ़ाने की हर कोई उम्मीद करता है. लेकिन इसके उलट कुछ बड़े राज्यों ने हर दिन होने वाले टेस्ट की संख्या को सीमा में बांध दिया है. ये स्थिति तब है जब इन राज्यों में केसों की संख्या ज्यादा है और लगातार बढ़ रही है. टेस्ट की सीमा बंधने से पॉजिटिविटी दर बढ़ रही है, यानि कुल टेस्ट में से पॉजिटिव निकलने वाले केसों की संख्या बढ़ रही है.

(DIU) ने जुलाई के पहले दो हफ्तों के लिए राज्य वार टेस्टिंग के आंकड़ों का विश्लेषण किया. ये आंकड़े संबंधित राज्यों के स्वास्थ्य विभागों की ओर से उपलब्ध कराए गए. विश्लेषण से सामने आया कि चार बड़े राज्यों -पश्चिम बंगाल, गुजरात, ओडिशा और बिहार में निम्न मानक विचलन (लो स्टैंडर्ड डिविएशन) रहा. इसके मायने हैं कि हर दिन किए जाने वाले टेस्ट की संख्या औसत दैनिक टेस्टिंग के आसपास ही टिकी रही. यह दर्शाता है कि राज्य डेली टेस्टिंग में ज्यादा वृद्धि नहीं देख रहे हैं.

पश्चिम बंगाल में, डेली टेस्टिंग का औसत 10,750 था और बहुत कम अंतर के साथ ये आंकड़ा इसी के आसपास बना रहा. हालांकि, इसकी पॉजिटिविटी दर के साथ ऐसा नहीं है. राज्य में सात दिन की रोलिंग एवरेज की जो गणना “covidtoday.in ” ने की है उसके मुताबिक कोविड-19 की स्थिति पहले की तुलना में कहीं खराब होने का संकेत देती है.

1 जुलाई तक, पश्चिम बंगाल की औसत टेस्ट पॉजिटिविटी रेट (TPR) 5.9 प्रतिशत थी, जो कि 14 जुलाई तक लगभग दोगुनी होकर 11.32 प्रतिशत हो गई. राज्य में 14 जुलाई तक कुल 32,838 केस दर्ज हुए, जिनमें 19,931 लोग रिकवर हो चुके हैं. पश्चिम बंगाल में अब तक 980 मौतें दर्ज हो चुकी हैं.

पड़ोसी राज्य बिहार भी इसी तरह का ट्रेंड दिखाता है. बिहार में दैनिक टेस्टिंग जुलाई के पहले दो हफ्तों में औसतन 7,600 रही. 10 जुलाई के बाद ही राज्य ने हर दिन होने वाली टेस्टिंग को 9,000 से ऊपर पहुंचाया. बिहार में 1 जुलाई को TPR 3.6 प्रतिशत थी जो 14 जुलाई को करीब तिगुनी 10.73 प्रतिशत हो गई. बिहार में अब तक 19,284 केस सामने आए हैं. 12,849 लोग रिकवर हो चुके हैं. राज्य में अब तक 174 मौतें हुई हैं.

निश्चित सीमा में टेस्टिंग करने वाले एक और राज्य, गुजरात में भी ऐसी ही कहानी है. भारतीय राज्यों में गुजरात पांचवां सबसे ज्यादा केस वाला राज्य है. यहां जुलाई के पहले दो हफ्तों में दैनिक टेस्टिंग 7,500 के आसपास रही. बंगाल की तरह, तय सीमा में टेस्टिंग होने से गुजरात में दैनिक केस भी उसी अनुपात में सामने आए. इससे आभास गया कि गुजरात ने अपने वक्र को समतल किया है. लेकिन गुजरात की TPR की एक अलग कहानी है.

1 जुलाई को गुजरात की TPR 10.64 प्रतिशत थी, जो 6. जुलाई को घटकर 9.53 प्रतिशत पर आ गई. हालांकि, यह फिर से बढ़ने लगी और 14 जुलाई तक गुजरात की TPR 11.48 प्रतिशत तक पहुंच गई. राज्य में 14 जुलाई तक कुल 43,637 केस सामने आए जिनमें से 30,503 लोग रिकवर हो चुके हैं. गुजरात में अब तक 2,069 मौतें दर्ज हुई हैं.

ओडिशा ने 14,000 से अधिक केस अब तक रिपोर्ट हुए हैं. यहां हर दिन लगभग 6,000 टेस्ट हो रहे हैं. राज्य में TPR एक जुलाई को 4.46 प्रतिशत थी जो 14 जुलाई को बढ़कर 9.48 प्रतिशत हो गई.

TPR टेस्टिंग की संख्या का एक पैमाना है. विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO ) के मुताबिक, ऊंची TPR कम टेस्टिंग का संकेत देती है और यह 5 प्रतिशत से नीचे रहनी चाहिए. जितनी TPR कम होती है, उतनी वो टेस्टिंग के अच्छे स्तर और कम्युनिटी प्रसार की कम संभावना को दर्शाती है.

टेस्टिंग में वृद्धि से कैरियर्स (वाहकों) की जल्दी पहचान करने और चेन को तोड़ने में मदद मिलती है. दिल्ली इसका अच्छा उदाहरण है. राजधानी की TPR 35 फीसदी तक पहुंच गई थी. लेकिन फिर यहां टेस्टिंग की संख्या 6,500 प्रति दिन (मध्य जून तक) से बढ़ाकर 20 जुलाई तक हर दिन 20,000 टेस्टिंग के स्तर पर लाया गया. नतीजा ये रहा कि TPR 8.71 प्रतिशत तक नीचे आ गई, जो लगातार गिर रही है.

दिल्ली लॉकडाउन को फिर से लागू किए बिना ऐसा करने में सक्षम रहा. वहीं बिहार ने अचानक केसों की संख्या में तेज बढोतरी देखने के बाद अपने सभी 38 जिलों में 16 दिन के लॉकडाउन का एलान किया है.

सिर्फ एक लॉकडाउन ही नहीं, इन राज्यों को पॉजिटिविटी रेट को कम करने के लिए दैनिक टेस्टिंग में काफी वृद्धि करने की जरूरत है. पश्चिम बंगाल, गुजरात, ओडिशा और बिहार, इन चारों राज्यों में 30 करोड़ से अधिक लोग रहते हैं.

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