उत्तराखंड में नौकरशाही स्थायी भाव की समस्या है, फिर भी समय-समय पर यह सुर्खियां बनती रही है। हाल ही में मंत्रियों और विधायकों की तमाम शिकायतों के बाद मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रदेश के आला अफसरों को अपनी सीमा में रहने की सख्त हिदायत दी थी। लोकतंत्र में लोक प्रतिनिधियों के महत्व और अधिकारियों के उत्तरदायित्व पर मुखर होते हुए मुख्यमंत्री ने नाफरमानी करने वाले अफसरों को परिणाम भुगतने तक की चेतावनी दी थी। अफसरों को हमेशा आगे रखने वाले मुख्यमंत्री के तेवर और लहजे से लग रहा था कि अब सूबे की नौकरशाही लाइन पर आ जाएगी। जन प्रतिनिधियों की सलाह मानी जाएगी और उनके सवालों के जवाब मिलने शुरू हो जाएंगे। एक सप्ताह भी नहीं बीता था कि नौकरशाही ने फिर सिर उठाया और ऐसे वैसे जनप्रतिनिधि को नहीं, बल्कि सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले और मुख्यमंत्री के करीबी कैबिनेट मंत्री को उनकी जगह बता दी।
दरअसल, शहरी विकास मंत्री मदन कौशिक ने पूरी तैयारी के साथ हरिद्वार महाकुंभ की तैयारियों पर बैठक बुलाई। हरिद्वार महाकुंभ जैसे विषय के महत्व को देखते हुए बैठक का एजेंडा भी एक सप्ताह पहले ही विभागीय सचिवों को भेज दिया गया। तय समय से पहले मंत्री जी बैठक में पहुंचे और काफी समय तक सिंचाई, ऊर्जा, लोक निर्माण, पेयजल, शहरी विकास के सचिवों का इंतजार करते रहे। इस बीच मात्र उनके अपने विभाग के सचिव ही बैठक में पहुंचे। आखिर में मंत्री जी को बैठक निरस्त कर वापस लौटना पड़ा। इसकी शिकायत मुख्य सचिव से की और नौकरशाहों के इस रवैये के खिलाफ मुख्यमंत्री से भी मिले। मुख्यमंत्री ने मुख्य सचिव को फिर हर बार की तरह इस बार भी हिदायत दी। बात आई और गई, लेकिन नौकरशाही आज भी वहीं अड़ी है, वहीं खड़ी है। दो दशकों से नौकरशाही का यह अंदाज रहा है। यह इस सरकार की ही नहीं, बल्कि हर सरकार की चुनौती रही है। कोई भी नौकरशाही से पार नहीं पा सका।
राज्य के सामाजिक राजनीतिक हालात के जानकारों का मानना है कि जब तक मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और विधायकों का चयन योग्यता के बजाय व्यक्तिगत निष्ठा, क्षेत्र और जातियों के आधार पर होता रहेगा, तब तक नौकरशाही सिर चढ़कर बोलती रहेगी। योग्य और सक्षम जनप्रतिनिधि ही नौकरशाही पर लगाम लगा सकता है। अब यह बात भाजपा और कांग्रेस को कब समझ में आएगी कहा नहीं जा सकता, आएगी भी या नहीं, यह कहना तो और भी मुश्किल है।
प्रदेश में 1987 बैच के आइएएस अधिकारी ओम प्रकाश ने मुख्य सचिव का पद संभाल लिया है। वह राज्य में वरिष्ठतम आइएएस होने के साथ ही मुख्यमंत्री के भी काफी करीब हैं। इसलिए यह माना ही जा रहा था कि अगर उपलब्ध दावेदारों में ही किसी को मुख्य सचिव पद सौंपा जाएगा तो ओम प्रकाश ही बाजी मारेंगे। हुआ भी यही। हालांकि पिछले माह यह चर्चा भी बड़े जोरों पर थी कि पीएमओ किसी तेज-तर्रार अधिकारी को इस पद पर उत्तराखंड भेज सकता है। अब देखना यह है कि मुख्यमंत्री नए मुख्य सचिव के माध्यम से प्रदेश की नौकरशाही को किस राह पर ले जाते हैं।
वन, जन और सुकून के पल
केंद्रीय वन एवं पर्यावरण और जलवायु मंत्रलय की सिटी फॉरेस्ट योजना आने वाले दिनों में उत्तराखंड के प्रमुख शहरों में भी परवान चढ़ेगी। देहरादून, हरिद्वार, रुड़की, ऋषिकेश, कोटद्वार, हल्द्वानी, काशीपुर और रुद्रपुर में सिटी फॉरेस्ट की स्थापना के मद्देनजर इन शहरों के नगर निगमों से वन महकमा अब प्रस्ताव मांगने जा रहा है। जाहिर है कि इन शहरों में भी लोग सिटी फॉरेस्ट में सुकून के पल बिता सकेंगे। साथ ही वे प्रकृति के संरक्षण के लिए भी प्रेरित होंगे। इसके अलावा वन्यजीव विविधता के लिहाज से धनी उत्तराखंड में कई और अच्छी खबरें भी आई हैं।
हाल में जारी बाघ गणना की विस्तृत रिपोर्ट में साफ हुआ कि बाघों की संख्या और घनत्व के मामले में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व देश के सभी 50 टाइगर रिजर्व में सिरमौर बना हुआ है। गंगोत्री नेशनल पार्क में तैयार होने वाले देश के पहले स्नो लेपर्ड कंजर्वेशन सेंटर की स्थापना को भी राज्य सरकार ने हरी झंडी दे दी है। गंगोत्री पार्क में ही विश्व के सबसे दुर्गम रास्तों में शुमार गर्तांगली को संवारने को भी वाइल्ड लाइफ क्लीयरेंस मिल चुकी है।