New Delhi: नाग को हम भगवान शिव का रूप मानते है और उनकी पूजा किया करते हैं।यही कारण भी है कि देश में आपको बहुत से नाग मंदिर मिल जाएंगे लेकिन हम आज जिस मंदिर की बात करने जा रहे हैं वह वास्तव में विचित्र है लेकिन सच है।PM मोदी ने लड्डू खिलाकर किया अमित शाह का स्वागत, पार्टी सांसदों को दी नसीहत
हम आपको आज चमोली जिले में नंदा देवी मार्ग पर एक मंदिर के बारे में बताने जा रहे है।वैसे तो यह मंदिर बिल्कुल सामान्य सा है लेकिन मंदिर का रहस्य इतना गहरा है जिसे बिना आस्था और विश्वास के समझना किसी के लिए भी कठिन हो सकता है।
दरअसल इस क्षेत्र के लोगों का मानना है कि यह मंदिर एक विशाल नाग का घर है। इस मंदिर का दरवाजा साल में सिर्फ एक बार बैसाख पूर्णिमा के दिन खुलता है। मंदिर के अंदर गर्भ गृह में जाने का साहस केवल एक व्यक्ति ही करता है और वह हैं मंदिर के पुजारी। कमाल की बात तो यह है कि पुजारी भी उस नाग देवता के डर से मंदिर में एक खास तरीके से प्रवेश करते हैं।
मंदिर के गर्भ गृह में प्रवेश से पहले पुजारी की आंखों पर कपड़ा बांध दिया जाता है। लोगों का मानना है कि अगर पुजारी ने भी नाग देवता को देख लिया तो डर से उन्हें कुछ भी हो सकता है। इसलिए बंद आंखों से ही देवता की पूजा करके वापस चले आते हैं।इसे अब आप विश्वास या अंधविश्वास जो चाहे वो कह सकते है।लेकिन एक बात तो तय है कि लोगों की आस्था इतनी गहरी है कि वह कहते हैं- यहां मांगी गई मुराद जरूरी पूरी होती है। स्थानीय लोग इन्हें लाटू देवता के नाम से पुकारते हैं।
लाटू देवता के बारे में कहा जाता है कि वह इस मंदिर में बंदी बनाकर रखे गए हैं। इन्हें मंदिर से निकलने की इजाजत नहीं है। देवी पार्वती जिन्हें नंदा देवी ने नाम से इस क्षेत्र में जाना जाता है, वह लाटू देवता की चचेरी बहन हैं। जब देवी पार्वती का भगवान शिव से विवाह हुआ तो बहन को ससुराल पहुंचाने लाटू देवता भी देवी पार्वती के साथ विदा हुए। रास्ते में इन्हें तेज प्यास लगी तो पास की ही एक कुटिया में पानी पीने चले गए।
कुटिया में एक साथ दो मटके रखे थे। एक में पानी था और दूसरे में मदिरा। गलती से लाटू देवता ने मदिरा पी लिया और उत्पात मचाने लगे। इससे देवी पार्वती क्रोधित हो गईं और लाटू देवता को बंदी बनाकर रखने का आदेश दे दिया। देवी पार्वती के आदेश के कारण लाटू मंदिर में सांप बनकर रहते हैं और बाहर नहीं निकलते। अब इस विचित्रता में कितनी सत्यता है इस बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता। अंत में बस यही कहा जा सकता कि जहां आस्था हैं वहां जो भी है वह सत्य है।