आजकल यह बहुत आम हो गया है कि गिरफ्तार होने के बाद एक आरोपी बीमार हो जाता है और अस्पताल में भर्ती हो जाता है, और पुलिस हिरासत का समय इलाज के दौरान समाप्त हो जाती है, जिससे पुलिस को उससे पूछताछ करने का मौका नहीं मिलता है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि पुलिस आरोपी से पूछताछ के लिए अतिरिक्त समय ले सकती है ताकि इलाज में बर्बाद हुए समय की भरपाई की जा सके।
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा कि कोई भी आरोपी जांच या अदालती प्रक्रिया से खिलवाड़ नहीं कर सकता। अदालत के अनुसार, सीबीआई को पश्चिम बंगाल के एक कोयला घोटाले के संदिग्ध से पूछताछ करने के लिए सात दिन की हिरासत दी गई है, लेकिन अस्पताल में भर्ती होने और अंतरिम जमानत की अनुमति दिए जाने के बाद से वह केवल ढाई दिन ही उससे पूछताछ कर पाई है।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने तर्क दिया कि सीबीआई विकास मिश्रा के अस्पताल में भर्ती होने के कारण विशेष न्यायाधीश द्वारा दी गई पुलिस रिमांड का उपयोग नहीं कर सकती थी और इसलिए सीबीआई को सात दिनों की शेष अवधि के लिए आरोपी की पुलिस हिरासत दी जानी चाहिए।
खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं
पीठ ने कहा, ‘किसी भी आरोपी को जांच या अदालत की प्रक्रिया से खिलवाड़ करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। किसी भी अभियुक्त को अपने आचरण से न्यायिक प्रक्रिया को विफल करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इस बात पर विवाद नहीं किया जा सकता है कि हिरासत में पूछताछ/जांच का अधिकार भी जांच एजेंसी के पक्ष में सच्चाई का पता लगाने के लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण अधिकार है, जिसे अभियुक्त ने जानबूझकर और सफलतापूर्वक विफल करने का प्रयास किया है। इसलिए, सात दिनों की शेष अवधि के लिए सीबीआई को पुलिस हिरासत में पूछताछ की अनुमति न देकर, यह एक अभियुक्त को प्रीमियम देना होगा जो न्यायिक प्रक्रिया को विफल करने में सफल रहा है।’