आज यानी शनिवार, 1 जून 2019 से वट व्रत प्रारंभ हो रहा है. ऐसे में ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक 3 दिनों तक महिलाएं व्रत-उपवास रखकर वटवृक्ष का पूजन करती हैं.
ज्येष्ठ मास के व्रतों में वट अमावस्या का व्रत बहुत प्रभावी माना जाता है जिसमें सौभाग्यवती स्त्रियां अपने पति की लंबी आयु एवं सभी प्रकार की सुख-समृद्धियों की कामना करती हैं. ऐसे में इस दिन स्त्रियां व्रत रखकर वटवृक्ष के पास पहुंचकर धूप-दीप व नैवेद्य से पूजा करती हैं और रोली और अक्षत चढ़ाकर वटवृक्ष पर कलावा बांधती हैं.इसी के साथ ही हाथ जोड़कर वृक्ष की परिक्रमा लेती हैं जिससे पति के जीवन में आने वाली अदृश्य बाधाएं दूर होती हैं तथा सुख-समृद्धि के साथ लंबी उम्र प्राप्त होती है. कहते हैं वटवृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पति व्रत के प्रभाव से मृत पड़े सत्यवान को पुन: जीवित किया था तभी से
इस व्रत को ‘वट सावित्री’ नाम से पॉपुलर है और इसमें वटवृक्ष की श्रद्धा-भक्ति के साथ पूजा की जाती है. कहा जाता है महिलाएं अपने अखंड सौभाग्य एवं कल्याण के लिए यह व्रत करती हैं और सौभाग्यवती महिलाएं श्रद्धा के साथ ज्येष्ठ कृष्ण त्रयोदशी से अमावस्या तक 3 दिनों तक उपवास रखती हैं.इसी के साथ त्रयोदशी के दिन वटवृक्ष के पास पहुंचकर अपने अखंड सौभाग्य और पति की दीर्घायु तथा सुख-समृद्धि के लिए संकल्प करना चाहिए और इस प्रकार संकल्प कर यदि 3 दिन उपवास करने की शक्ति न हो तो अमावस्या को उपवास कर प्रतिपदा को पारण करना चाहिए. कहते हैं वट की परिक्रमा करते समय 108 बार या यथाशक्ति कलावा लपेटा जाता है और ‘नमो वैवस्वताय’ इस मंत्र से वटवृक्ष की प्रदक्षिणा करनी चाहिए.