केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा लिखे एक खत में ‘गोरखालैंड’ शब्द के प्रयोग ने विवाद का रूप धारण कर लिया है। यह पत्र उन्होंने दार्जिलिंग के सांसद राजू बिस्ता के खत के जवाब में लिखा था। राज्य की सत्ताधारी पार्टी टीएमसी को इसमें राज्य को विभाजित करने की साजिश नजर आ रही है। बीजेपी ने उसके इस आरोप को सिरे से खारिज किया है।
बीजेपी सूत्रों के मुताबिक बिस्ता ने जुलाई में शाह को खत भेज कर दिल्ली में खासतौर पर पूर्वोत्तर के लोगों के साथ होने वाले नस्ली भेदभाव का मुकाबला करने के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा बनायी गयी विशेष शाखा के दायरे से गोरखाओं को बाहर रखने को लेकर चिंता प्रकट की थी। गृह मंत्री शाह ने सांसद बिस्ता के खत के उत्तर में कहा कि ‘गोरखालैंड और लद्दाख’ के लोगों को लेकर उनकी चिंता पर गौर किया जा रहा है। शाह द्वारा ‘‘गोरखालैंड’’ शब्द का प्रयोग किए जाने की तृणमूल कांग्रेस ने निंदा की है।
टीएमसी के सीनियर नेता और मंत्री गौतम देब ने कहा, ‘‘ उन्होंने गोरखालैंड शब्द का प्रयोग क्यों किया। पूरे क्षेत्र में गोरखालैंड नाम की कोई जगह नहीं है। ऐसा जान पड़ता है कि जम्मू कश्मीर को बांटने के बाद भाजपा बंगाल को बांटने की योजना बना रही है। मगर जब तक यहां तृणमूल कांग्रेस है, राज्य को कोई बांट नहीं सकता।’’ उधर दार्जिलिंग के सांसद राजू बिस्ता ने बताया कि गोरखालैंड शब्द के प्रयोग का पृथक राज्य के गठन से कोई लेना-देना नहीं है।