सालों से भूटान का एक गांव अपने घरों के दरवाजे, दीवारों, खम्भें, खिड़किया और गांवों के आसपास स्मृति चिंह पर एक काल्पानिक तस्वीर बनाने के लिए जाना हैं। आपको पढ़कर लग रहा होगा कि इसमें खास क्या हैं?, दरअसल इस गांवों में सालों से पुरुषों के लिंग के तस्वीर बनाने की प्रथा चलती आ र ही हैं। सुनकर थोड़ा सा आश्चर्य हो रहा है लेकिन यहां इस गांव में घरों के दरवाजों या मुख्य स्थानों पर पेनिस की तस्वीर बनाना रिवाज हैं। आइए आज हम आपको इस आर्टिकल में बताएंगे कि आखिर क्यूं इस गांव में दरवाजों और दीवारों पर पेनिस की तस्वीरें बनाई जाती हैं?
इस गांव में हर घर और मुख्य स्थानों के बाहर पेनिस के भित्तिचित्र बने हुए दिखाई देंगे। थिम्बू शहर के अलावा पुनाखा जैसे गांव में पुरुष लिंग की भित्तिचित्र आसानी से देखे जा सकते हैं।
कई शताब्दी पुराना है ये कल्चर
तिब्बतियन धार्मिक गुरु द्रुक्पा कुन्ले ने 15 वी शताब्दी में इस पेनिस आर्ट का उद्भव किया था। कहा जाता है कि जब वे शिक्षा प्रचार करने के लिए भूटान आए थे। तब यात्रा के दौरान उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि वो हवा में बाण चलाएंगे और जहां ये तीर का निशाना लगेगा, उस जगह जाकर वो अपना मठ बनाएंगे।
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वो तीर एक लड़की के कक्ष में मिला
इसके बाद द्रुक्पा अपने तीर को ढूंढते हुए एक लड़की के रुम में पहुंचे। उस लड़की का नाम “पेलसंग बुटी” था। उस लड़की को देखने के बाद कुन्ले उस पर मोहित हो गए और वहीं उसके साथ उन्होंने रात बिताई और यौन संबंध बनाया। उसी रात वो लड़की प्रेग्नेंट हो गई। उसके बाद से वो वहीं बस गए। वहीं उस स्थान पर मठ बनाकर उन्होंने वहां पेनिस की लकड़ी की मूर्ति लगा दी। जिसे “उर्वरता मठ” कहा जाने लगा।
कहीं विवादास्पद बातें भी
धीरे धीरे वह महिलाओं के साथ यौन संबंध और कामुकता में लिप्त होने लगे। उनके इन कारनामों की वजह से कई विवादास्पद बाते भी सामने आई जिसमें द्रुक्पा कुन्ले ने कहा है कि ‘घड़े की तली में सबसे अच्छी मदिरा होती है और जीवन का असली आनंद नाभि के नीचे ही मिलता हैं।
फिर उसे बच्चें पैदा करने वाला संत कहा जाने लगा
इस घटना के बाद भूटान में द्रुक्पा कुन्ले की पहचान प्रजनन संत या उर्वरता का संत’ (फर्टिलिटी सेंट ) के तौर पर होने लगी। वो पूरे दिन महिलाओं के साथ शराब पीता था और कुंआरी लड़कियों के साथ संबंध बनाता था।
फैलस आर्ट पेंटिंग
उसने अपने अनुचरों को शिक्षा दी कि मनुष्य को सांसारिक तृष्णा से दूर रहना चाहिए और सादा जीवन व्यतीत करना चाहिए। सादे जीवन से उसका मतलब था कि आध्यात्म की खोज और कामुकता की उदारता। वह आशीर्वाद के रूप में भक्तों के साथ संभोग करता था। इसलिए धीरे धीरे पेनिस आर्ट का उद्भव उसके समय ही होने लगा। उसने बताया कि पुरुष का लिंग बुराई से सुरक्षात्मक ढाल के रूप में अभिनय करने वाले पापों की ये छविएं, बुराई दूर करती हैं। इन पेटिंग्स को फुलास पेंटिंग कहा जाने लगा।
भूटान के पश्चिमी भाग में मानते है जीववादी प्रथाओं को
एक प्रथा के अनुसार देवों का उद्यम या मेले में एक समुदाय ऐसी सीढ़ी का उपयोग करता है जो कि लिंग के आकार की होती है। पौराणिक कथाओं में लिखा है कि देव रस्सी के सहारे इस सीढ़ी से नीचे आकर आरोग्यता और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
निसंतान दम्पति आते है यहां
कई नि: संतान दंपति हर साल Chimi Lhakhang जो कि एक ‘उर्वरता मठ’ है, तीर्थ करने जाते हैं। यहां बौद्ध भिक्षु उन्हें आशीर्वाद में लकड़ी का लिंग देता है।