लखनऊ. राजनीति में हार और जीत आम है, लेकिन कई बार चुनावी नतीजे नेताओं के करियर के लिए खतरनाक साबित होते हैं. बीएसपी की मायावती और सपा के अखिलेश यादव फिलहाल इसी स्थिति से गुजर रहे हैं. इस बार के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने इन दोनों के सामने राजनीतिक संकट खड़ा कर दिया है.
बुरी तरह से हारीं बीएसपी प्रमुख मायावती के लिए अगली बार राज्य सभा सदस्य बनने के सभी रास्ते बंद नज़र आ रहे हैं. दूसरी तरफ, अखिलेश यादव के सामने राज्य सभा जाने से बेहतर विकल्प बाकी नही है. हालांकि, इसके लिए उन्हें अप्रैल 2018 तक का इंतज़ार करना होगा. फिलहाल वे सिर्फ विधान परिषद के सदस्य हैं.
मायावती के लिए राज्य सभा पहुंचना लगभग असंभव
बता दें कि 2012 में विधानसभा चुनाव हारने के बाद मायावती राज्य सभा की सदस्य बन गई थीं. मुख्यमंत्री रहते हुए वे विधान परिषद की सदस्य थीं, लेकिन चुनाव हारने के बाद उन्होंने इस्तीफा दिया और राज्य सभा में दाखिल हो गईं. चूंकि, उस वक्त बसपा के 87 विधायक विधान सभा में थे, जो कि इलेक्ट्रॉल कॉलेज प्रोविजन के हिसाब से राज्य सभा सदस्य बनने के लिए काफी थे. लेकिन इस बार स्थिति विपरीत है. यूपी में बसपा के सिर्फ 19 कैंडिडेट ही जीत पाए हैं. इस बार मायावती के लिए यूपी विधान परिषद का सदस्य बनना भी लगभग असंभव है.
सपा से गठबंधन करके जा सकती हैं राज्य सभा
इस चुनौती से निपटने के लिए मायावती क्या करेंगीं, यह देखना दिलचस्प होगा. क्या वह अपने प्रतिद्वंदी सपा के साथ मिल जाएंगीं? जैसा कि बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल ने किया था. एकसाथ मिलकर दोनों पार्टियां राज्यसभा में 2 सदस्य भेज सकती हैं. या वह 2019 के लोकसभा चुनावों का इंतज़ार करेंगीं?
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मुलायम को नहीं मिलेगा विधान परिषद में ज्यादा सीटों का फायदा
सपा के नेशनल प्रेसिडेंट अखिलेश यादव को भी ऐसी ही मुश्किल परिस्थिति का सामना करना पड़ सकता है. पांच साल तक सरकार चलाने के बावजूद सपा यहां सिर्फ 47 सीटें ही जीत पाई. हालांकि, विधान परिषद की 100 सीटों में से 67 सपा के पास हैं, लेकिन यह इसलिए फायदेमंद नहीं होगा क्योंकि विधान सभा में बीजेपी के पास दो तिहाई बहुमत है.
अखिलेश को करना होगा 2018 तक का इंतज़ार
सपा सूत्रों के मुताबिक, सही तरीका यह है कि अखिलेश विधान परिषद से इस्तीफा दें और राज्य सभा जाएं. हालांकि, इसके लिए उन्हें अप्रैल 2018 तक का इंतज़ार करना होगा क्योंकि तब 10 सीट खाली होंगी. मनोहर पर्रिकर के गोवा सीएम बनने के बाद उनकी राज्य सभा सीट भी खाली होगी. लेकिन यूपी में बीजेपी को मिले बहुमत के कारण अखिलेश को इसका फायदा नहीं होगा.
अपोजिशन लीडर बनाए जाने पर भी संशय
राज्य सभा सदस्य बनने के अलावा अखिलेश के सामने अपोजिशन लीडर बनना भी चुनौती होगा. चूंकि, बीजेपी की लहर के बावजूद शिवपाल यादव और आजम खान जीत गए हैं, ऐसे में इनमें से किसी एक को अपोजिशन लीडर बनाया जा सकता है. विधान परिषद में अपोजिशन लीडर अहमद हसन की जगह हासिल करना भी अखिलेश के लिए मुश्किल नजर आती है. पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी के नेशनल प्रेसिडेंट को यह पद नहीं ही दिया जाएगा.
मुलायम को पार्टी का नेशनल प्रेसिडेंट बनाएंगें अखिलेश?
अब यह देखना होगा कि पार्टी के नेशनल प्रेसिडेंट के तौर पर मुलायम सिंह के लिए संभावनाएं बनेंगी या नहीं? मुलायम के नजदीकियों के मुताबिक, अखिलेश खुद यह कुह चुके हैं कि चुनाव के बाद वे सिर्फ तीन महीने तक नेशनल प्रेसिडेंट रहना चाहेंगें. मुलायम के करीबी भी उन्हें पार्टी प्रेसिडेंट बनाए जाने की मांग कर रहे हैं.