पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने जालंधर कोर्ट द्वारा पॉक्सो एक्ट में सुनाई गई 20 साल की कठोर सजा के फैसले को रद्द कर दिया है। हाईकोर्ट ने कहा कि पीड़िता भीड़भाड़ वाली जगह पर याची की बाइक के पीछे की सीट पर बैठी थी। उसने शोर नहीं मचाया। जो यह दर्शाता है कि संबंध पूरी तरह से सहमति से था। किसी तरह की जबरदस्ती नहीं की गई।
याचिका दाखिल करते हुए जालंधर निवासी व्यक्ति ने 2017 के मामले में अगस्त 2022 को जालंधर कोर्ट द्वारा पॉक्सो एक्ट के तहत सुनाई गई 20 साल के कठोर कारावास की सजा के आदेश को चुनौती दी थी। अभियोजन पक्ष के अनुसार पीड़िता घटना के समय नाबालिग थी और याची ने शादी का झांसा देकर उसके साथ दुष्कर्म किया। प्रस्तुतियों और रिकाॅर्ड पर उपलब्ध सामग्री की जांच करने पर खंडपीठ ने पाया कि पीड़िता की उम्र संदिग्ध है, इसलिए यह स्वीकार नहीं किया जा सकता कि वह नाबालिग थी और सहमति देने में असमर्थ थी। जिस स्कूल में पीड़िता पढ़ती थी, उसकी प्रिंसिपल ने बताया था कि रजिस्टर में प्रविष्टि गांव के चौकीदार द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट के आधार पर की गई थी। चूंकि चौकीदार की रिपोर्ट साबित नहीं हुई है, इसलिए रिकाॅर्ड विश्वसनीय नहीं है।
मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार पीड़िता के गुप्तांग से जो शुक्राणु मिले वह याची से मेल नहीं खाते थे। पीड़िता के शरीर के किसी भी हिस्से पर कोई आंतरिक या बाहरी चोट के निशान नहीं थे। जब पीड़िता मोटरसाइकिल पर भीड़भाड़ वाली जगहों से गुजरी,उस समय वह चीखकर राहगीरों की मदद मांग सकती थी। पीड़िता स्वेच्छा से अभियुक्त के साथ थी। कोर्ट ने संदेह का लाभ देते हुए अभियुक्त को बरी कर दिया।