न्यूयॉर्क शहर की सबसे बड़े अस्पताल प्रणाली में चिकित्सकों के प्रारंभिक निष्कर्षों के अनुसार, रक्त को पतला करके (ब्लड थिनर्स से) कोरोना वायरस से संक्रमित रोगियों का इलाज करने से उनके जिंदा रहने की संभावनाओं को बढ़ाया जा सकता है।
घातक संक्रामक महामारी के इलाज में यह उम्मीद का एक और जरिया बनकर उभरा है। वाशिंगटन पोस्ट ने बताया कि 2,733 रोगियों पर किए गए विश्लेषण के परिणाम बुधवार को अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी जर्नल में प्रकाशित किए गए थे।
अखबार को दिए एक साक्षात्कार में, माउंट सिनाई अस्पताल के एक चिकित्सक और अध्ययन के लेखकों में से एक वैलेन्टिन फस्टर ने कहा कि यह अवलोकन केवल मेडिकल रिकॉर्ड की समीक्षा पर आधारित थे।
उन्होंने कहा कि निष्कर्षों के लिए इससे अधिक ठोस और औचक अध्ययनों को करने की जरूरत है। मगर, परिणाम आशाजनक रहे हैं। उन्होंने कहा कि मेरी राय सतर्क करने वाली है, लेकिन मुझे आपको बताना चाहिए मुझे लगता है कि यह मददगार साबित हो सकता है।
उन्होंने कहा कि यह उस दरवाजे का खुलना है, जिससे पता किया जा सकता है कि किस दवा का उपयोग करना है। मार्च के बाद से जबसे कोरोना वायरस यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में फैला है, डॉक्टर रहस्यमय रक्त के थक्कों के मिलने की रिपोर्ट कर रहे हैं।
कोरोना वायरस से संक्रमित मरीजों के शरीर में यह जेल की तरह बन जाता है। सांस लेने में परेशानी होने का सामना करने वाले रोगियों की ऑटोप्सी से पता चला है कि कुछ लोगों के फेफड़ों में असामान्य माइक्रो क्लॉट्स (खून के थक्के) थे।
पिछले महीने, डॉक्टरों ने न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में 30 और 40 के दशक उम्र गुजार रहे लोगों में Covid-19 पॉजिटिव लोगों के पांच असामान्य मामलों में बड़े स्ट्रोक का अनुभव करने की सूचना दी।
माउंट सिनाई में किया गया यह अध्ययन 14 मार्च से 11 अप्रैल तक अस्पताल में भर्ती होने वाले रोगियों पर ध्यान केंद्रित किया गया था। रोगियों में जिनका इलाज करते हुए रक्त को पतला कर दिया गया था और जो वेंटिलेटर पर नहीं थे, वे भी उतनी ही संख्या में मरे जितने लोगों का रक्त पतला नहीं किया गया था। मगर, अध्ययन में कहा गया है कि रक्त पतले होने वाले रोगियों का समूह 14 दिनों की तुलना में 21 दिन तक जिंदा रहा।