स्पाइनल मस्कुलर बीमारी की दवा निजी उपयोग के लिए आयात करने पर कर से छूट की श्रेणी में आती है : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण

राज्यसभा में बुधवार को कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने देश में स्पाइनल मस्कुलर बीमारी की दवा का दाम 23 करोड़ रुपये पड़ने की बात कही. इसमें 7 करोड़ रुपये सिर्फ कर लगने का आकलन पेश किया. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सदन में आज इस पर स्पष्टीकरण दियावित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने राज्यसभा में कहा कि विवेक तन्खा ने स्पाइनल मस्कुलर बीमारी की दवा की कीमत 16 करोड़ रुपये और इस पर 7 करोड़ रुपये कर होने की बात कही. लेकिन वह सदन को ये बात बताना चाहती हैं कि उनका कर के लिए किया गया आकलन उचित नहीं है.

उन्होंने सदन को जानकारी दी कि देश में कोई भी जीवन रक्षक दवा जो व्यक्तिगत उपयोग के लिए विदेशों से आयात की जाती है. उसे बेसिक कस्टम ड्यूटी से छूट प्राप्त है. ये छूट या तो बिना किसी शर्त के या स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक या राज्यों के स्वास्थ्य सेवा महानिदेशक की ओर से तय की गई दवाओं पर दी जाती है. ऐसे में स्पाइनल मस्कुलर बीमारी की दवा निजी उपयोग के लिए आयात करने पर कर से छूट की श्रेणी में आती है.

उन्होंने कहा कि कुछ जीवन रक्षक दवाओं पर 5% जीएसटी लगता है. इस हिसाब से इस पर 80 लाख रुपये का कर बनता है. जीएसटी पर निर्णय जीएसटी परिषद लेती है, लेकिन देश के वित्त मंत्री के पास मामले के हिसाब से आईजीएसटी पर अस्थाई रोक लगाने का अधिकार है. यदि इस संबंध में कोई निवेदेन प्राप्त होता है तो वित्त मंत्री अस्थाई रोक लगा सकते हैं और बाद में इसे जीएसटी परिषद के समक्ष रखा जाता है.

बीजेपी सांसद मेनका गांधी ने लोकसभा में थैलीसीमिया का मुद्दा उठाया. उन्होंने थैलीसीमिया के मरीजों को समय से रक्त उपलब्ध कराने की बात कही. इस पर स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि देश के सभी सरकारी अस्पतालों में ऐसे मरीजों के लिए रक्त मुफ्त उपलब्ध है. कोरोना काल में रक्त की कमी के बावजूद ऐसे मरीजों को कोई परेशानी नहीं होने दी गई. जिन लोगों का बोनमैरो ट्रांसप्लांट होना होता है उनके लिए कॉरपोरेट से भी आगे आकर मदद के लिए कहा गया है. मेनका गांधी ने इस बीमारी को सरकार की आयुष्मान भारत योजना में शामिल करने की मांग रखी.

राज्यसभा में बुधवार को शून्यकाल के दौरान कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने स्पाइनल मस्कुलर बीमारी का मुद्दा उठाया था. उन्होंने कहा था कि देश में हर साल 2,500 बच्चे इस बीमारी के साथ पैदा होते हैं. इससे प्रभावित बच्चों को पैदा होने के बाद दो साल तक चलने-फिरने में परेशानी होती है. इस बीमारी की एकमात्र दवा अमेरिका में बनती है. इसकी कीमत करीब 16 करोड़ रुपये पड़ती है. लेकिन समस्या और भी है. इस दवा पर 7 करोड़ रुपये का कर लगता है. इसलिए देश में इसकी कीमत 23 करोड़ रुपये पड़ती है.

तन्खा ने सरकार से इस दवा के लिए सरकारी  स्तर पर अमेरिका के साथ मोल-भाव करके इसे उचित कीमत पर हासिल करने की मांग रखी थी. साथ ही इस दवा पर कर छूट देने की मांग की थी.

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