विलय की प्रक्रिया पूरी करने के बाद सरकार वित्तीय रूप से मजबूत तीन-चार क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों (आरआरबी) को चालू वित्त वर्ष में ही शेयर बाजारों में सूचीबद्ध करना चाहती है। सूत्रों ने कहा कि बैंकों के विलय की प्रक्रिया जारी है। सरकार आरआरबी की संख्या को वर्तमान 45 से घटाकर 38 पर लाना चाहती है। कुछ और आरआरबी का विलय होने की उम्मीद है, क्योंकि संबंधित राज्य सरकारों ने इसके लिए मंजूरी दे दी है।
सूत्रों के मुताबिक एक राज्य के आरआरबी का विलय इस नजरिये से किया जा रहा है कि इससे इन बैंकों के लिए कर्मचारियों पर होने वाला खर्च घटेगा, टेक्नोलॉजी का बेहतर उपयोग होगा, पूंजी आधार, सहयोग के क्षेत्र और बैंकों के एक्सपोजर में बढ़ोतरी होगी। गौरतलब है कि पिछले कुछ महीने में विभिन्न राज्यों में 21 छोटे बैंकों का विलय कर बड़े बैंक बनाए गए हैं, ताकि उन्हें बड़े स्तर पर कारोबार करने का लाभ मिले।
उन्होंने कहा कि तीन-चार आरआरबी प्रारंभिक पब्लिक ऑफर (आइपीओ) लाने के योग्य हैं। ये इसी साल अपने ऑफर पेश कर सकते हैं। इन बैंकों की स्थापना आरआरबी अधिनियम-1976 के तहत हुआ था। इनकी स्थापना का मकसद ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे किसानों, कृषि मजदूरों और कारीगरों को कर्ज और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराना था। इस कानून को 2015 में संशोधित कर दिया गया। संशोधन के बाद इन बैंकों को केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्पांसर बैंक के अलावा अन्य स्रोतों से भी पूंजी जुटाने की अनुमति दे दी गई।
अभी आरआरबी में केंद्र सरकार की 50 फीसद, स्पांसर बैंक की 35 फीसद और संबंधित राज्य सरकार की 15 फीसद हिस्सेदारी है। संशोधित कानून के मुताबिक हिस्सेदारी घटाए जाने के बाद भी आरआरबी में केंद्र सरकार और स्पांसर बैंक की कुल हिस्सेदारी 51 फीसद से नीचे नहीं जा सकती है। इस तरह से आरआरबी का स्वामित्व और नियंत्रण केंद्र सरकार के हाथ में ही रहेगा।
आरआरबी के वित्तीय स्वास्थ्य को बेहतर करने के लिए सरकार ने 2005 में चरणबद्ध तरीके से आरआरबी के विलय की प्रक्रिया शुरू की थी। मार्च 2005 के अंत में देश में आरआरबी की कुल संख्या 196 थी, जो 2006 में घटकर 133 रह गई। मार्च 2012 तक संख्या घटकर 82 पर आ गई। बाद में यह और घटकर 56 रह गई थी।