श्रीमद्भागवत गीता में जाने ऐसी कौन सी चीजें है जिनसे नष्ट होता है मानव जीवन

हिंदू धर्म में श्रीमद्भागवत गीता का विशेष महत्व है। माना जाता है कि श्रीमद्भागवत गीता भगवान श्री कृष्ण के मुख से निकले हर एक शब्द का लिखित रूप है। गीता का जन्म महाभारत के युद्ध के बीच हुआ था। जब धर्मयुद्ध के बीच में अर्जुन मोह के बंधन में बंध गए थे। तब भगवान श्री कृष्ण से अर्जुन को गीता उपदेश दिए थे। जिसके बाद ही वह युद्ध लड़ने के लिए सही तरीके से सोच पाए जाते थे। भगवान कृष्ण जानते थे कि त्रेता युग के बाद कलयुग आरंभ हो जाएगा। तब व्यक्ति मोह, माया, लोभ, छल के जाल में इस तरह फंस जाएगा कि उसे निकालने के लिए एक दिव्य ज्ञान की जरूरत पड़ेगी। तभी वह हर बंधन से मुक्त हो जाएगा। भगवान कृष्ण ने एक चीज के बारे में बताया है जो व्यक्ति हर तरफ से बर्बाद कर देती है। आइए जानते हैं कि ऐसी कौन सी चीजें है जिनसे व्यक्ति को हमेशा दूर रहना चाहिए।

श्रीमद भगवद गीता के अध्याय 2 के 63 श्लोक में कहा गया है कि-

क्रोधाद्भवति संमोहः संमोहात्स्मृतिविभ्रमः।

स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति।।

इस श्लोक का अर्थ है कि क्रोध से उत्पन्न होता है मोह और मोह से स्मृति विभ्रम। स्मृति के भ्रमित होने पर बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि के नाश होने से वह मनुष्य नष्ट हो जाता है।

श्रीमद भगवद गीता के इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि व्यक्ति को कभी भी क्रोध नहीं करना चाहिए। क्योंकि क्रोध करने पर व्यक्ति का दूसरा के प्रति मोह यानी प्यार खत्म हो जाता है। जब व्यक्ति के अंदर प्यार खत्म होता है तो उसको लेकर दिमाग में बनाई गई स्मृति कमजोर होने लगती है। ऐसे में जब व्यक्ति की स्मृति ही खोने लगती है तो व्यक्ति की बुद्धि का नाश होने लगता है। जब व्यक्ति की बुद्धि ही नहीं काम करती है तो उस व्यक्ति का हमेशा के लिए नाश हो जाता है। क्योंकि क्रोध के कारण उसका परिवार के साथ-साथ समाज भी बहिष्कार कर देता है। इसलिए बेकार में गुस्सा करने से बचना चाहिए।

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