आजाद भारत के इतिहास में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या काले अध्याय के तौर पर दर्ज है. 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने गांधी की उस वक्त हत्या कर दी थी, जब वे दिल्ली के बिड़ला भवन में प्रार्थना सभा के बाद लोगों से मिल रहे थे. महात्मा गांधी की हत्या के बाद पूरे देश में शोक की लहर दौड़ गई. तत्कालीन गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई ने गांधी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को जिम्मेदार मानते हुए फरवरी, 1948 को उस पर प्रतिबंध लगा दिया.
4 फरवरी, 1948 को आरएसएस पर प्रतिबंध लगाने के लिए केंद्र सरकार के गृह विभाग द्वारा जारी विज्ञप्ति में कहा गया, ‘भारत सरकार देश में सक्रिय नफरत और हिंसा की ताकतें, जो देश की आजादी को संकट में डालने और उसके नाम को काला करने का काम कर रही हैं, उन्हें जड़ से उखाड़ने के लिए प्रतिबद्ध है. इस नीति के अनुसरण में भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को गैरकानूनी घोषित करने का निर्णय लिया है.’ फरवरी 1948 में आरएसएस पर लगा यह प्रतिबंध जुलाई 1949 तक जारी रहा.
इस दौरान आरएसएस से जुड़े लोगों ने सरकार से प्रतिबंध हटाने के लिए कई बार प्रयास किए. जुलाई 1948 में हिंदू महासभा के नेता श्यामा प्रसाद मुखर्जी को सरदार पटेल ने एक चिट्ठी में लिखा, ‘मुझे इसमें कोई शक नहीं कि हिंदू महासभा के चरमपंथी गुट इस साजिश (गांधी की हत्या) में शामिल थे. आरएसएस की गतिविधियों ने राज्य और सरकार के अस्तित्व पर स्पष्ट तौर पर खतरा पैदा कर दिया है. हमारी रिपोर्ट बताती है कि प्रतिबंध के बावजूद यह गतिविधियां खत्म नहीं हुईं.’
सितंबर, 1948 में आरएसएस के तत्कालीन प्रमुख माधव सदाशिव गोलवरकर ने सरदार पटेल को चिट्ठी लिखकर संघ पर से प्रतिबंध हटाने की मांग की. जिसके जवाब में सरदार ने लिखा, ‘हिंदू समाज को संगठित करना और उनकी मदद करना एक बात है, लेकिन उनके कष्टों के लिए निर्दोष, असहाय, महिलाओं और बच्चों से बदला लेना दूसरी बात है. उनके सारे भाषण सांप्रदायिकता के जहर से भरे होते हैं. हिंदुओं को उनकी रक्षा के लिए संगठित करने और उत्साहित करने के लिए जहर फैलान की आवश्यकता नहीं थी. इस जहर का ही नतीजा देश को गांधी जी के बलिदान से चुकाना पड़ा.’
इस चिट्ठी के बाद सरदार पटेल से गोलवरकर की दो बार और मुलाकात हुई. अंतत: 11 जुलाई, 1949 को संघ से प्रतिबंध तब हटा जब तत्कालीन आरएसएस प्रमुख एमएस गोलवरकर ने सरदार पटेल की शर्तें मानते हुए लिखित आश्वासन दिया. यह प्रतिबंध इस शर्त के साथ हटाया गया कि आरएसएस अपना संविधान बनाए और उसे प्रकाशित करे, जिसमें लोकतांत्रिक ढंग से चुनाव हों. इसके साथ ही संघ एक सांस्कृतिक संगठन के तौर पर काम करते हुए राजनीतिक गतिविधियों से दूर रहे. हिंसा और गोपनियता का त्याग करे. भारतीय ध्वज और संविधान के प्रति वफादार रहने की शपथ लेते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास रखे.