Lok Sabha Election 2019 की तारीखों का ऐलान हो चुका है। चुनाव तो पांच साल बाद होते हैं और इन पांच सालों में बहुत कुछ बदल जाता है। इस बार के चुनाव में भी बदलाव नजर आएगा और यह बदलाव एनडीए खेमें में अधिक दिखेगा। हालांकि महागठबंधन भी बदलाव से अछूता नहीं रहेगा। एक फर्क यह नजर आएगा कि दलीय उम्मीदवारों की संख्या कम हो जाएगी। यह कमी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों में एकसाथ दिखेगी।
भाजपा के 30 के बदले सिर्फ 17 उम्मीदवार खड़े होंगे। कांग्रेस के उम्मीदवारों की संख्या कम होने की संभावना नहीं है। 12 उम्मीदवार खड़े थे। अबकी इससे एकाध कम या अधिक हो सकते हैं। लेकिन, उसमें भी उम्मीदवारों का चेहरा जरूर बदल जाएगा। पुराने कांग्रेसी तारिक अनवर और खानदानी कांग्रेसी कीर्ति आजाद मूल पार्टी के उम्मीदवार होंगे। पार्टी को कुछ और नए चेहरे की तलाश है।
भाजपा के सिर्फ 13 उम्मीदवार ही कम नहीं होंगे बल्कि पिछली बार जीते पांच सांसद भी पार्टी उम्मीदवार की हैसियत से चुनाव मैदान में नहीं रहेंगे। बेगूसराय के भोला प्रसाद सिंह का निधन हो गया। जबकि शत्रुघ्न सिन्हा व्यवहारिक तौर पर पार्टी से अलग हो चुके हैं। कीर्ति आजाद पूरी तरह आजाद हो गए हैं। जदयू के समझौते के कारण भाजपा के दो सिटिंग सांसदों को बेटिकट होना है।
जदयू को पिछले चुनाव की तुलना में 21 उम्मीदवारों की छंटनी करनी होगी। उस बार 38 उम्मीदवार थे। 2019 में सिर्फ 17 रहेंगे। इसके अलावा भाकपा के साथ उसकी दोस्ती भी कायम नहीं रहेगी। जदयू से गठबंधन कर भाकपा के दो उम्मीदवार खड़े थे। इस समय उसकी बातचीत महागठबंधन से चल रही है। बिना किसी से समझौते के पिछला चुनाव लड़े भाकपा माले को भी महागठबंधन से दोस्ती की उम्मीद है।
रालोसपा का पाला बदल गया है। वह एनडीए से अलग होकर महागठबंधन के साथ है। रालोसपा के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा पिछली बार नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए वोट मांग रहे थे। नई भूमिका में अब उन्हें नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के पद से हटाने के लिए वोट मांगना पड़ेगा।
कुछ नई पार्टियां पहली बार लोकसभा का चुनाव लडऩे जा रही है। उनमें हिन्दुस्तानी अवाम मोर्चा भी है। कुशवाहा की तरह हम के संस्थापक जीतन राम मांझी भी नमो के मुरीद थे। वह भी सुर बदलकर चुनाव प्रचार करेंगे।
सन ऑफ मल्लाह मुकेश सहनी ने वीआइपी के नाम से नई पार्टी बनायी है। वह भी एनडीए के बदले महागठबंधन के गुण गाएंगे। उम्मीदवारों की कमी राजद में भी होगी। पिछले 27 के मुकाबले इस चुनाव में उसके सात-आठ कम उम्मीदवार खड़े होंगे। यह अबतक की सबसे कमजोर संख्या रहेगी।