फाल्गुन शुक्ल की एकादशी को काशी में रंगभरी एकादशी कहा जाता है. रंगभरी एकादशी बाबा विश्वनाथ के भक्तों के लिए बेहद विशेष है. ये वो पर्व है जिसे भोले की नगरी काशी में मां पार्वती के स्वागत के प्रतीक के रुप में मनाया जाता है.
इस दिन बाबा विश्वनाथ का विशेष श्रृंगार होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, रंगभरी एकादशी के दिन ही भगवान शिव माता पार्वती को विवाह के बाद पहली बार काशी लेकर आए थे. इस दिन से काशी में होली का पर्व शुरू हो जाता है, जो लगातार 6 दिनों तक चलता है. इस बार रंगभरी एकादशी 25 मार्च को है.
इस दिन सुबह नहाकर पूजा का संकल्प लें. घर से एक पात्र में जल भरकर शिव मंदिर जाएं. अबीर, गुलाल, चन्दन और बेलपत्र भी साथ ले जाएं. पहले शिव लिंग पर चन्दन लगाएं. फिर बेल पत्र और जल अर्पित करें. इसके बाद अबीर और गुलाल अर्पित करें. भोलेनाथ से अपनी सभी परेशानियों को दूर करने की प्रार्थना करें.
पुराणों के अनुसार, रंगभरी एकादशी पर आंवले के पेड़ की भी उपासना की जाती है. इसलिए इस एकादशी को आमलकी एकादशी भी कहा जाता है. इस दिन आंवले के पूजन के साथ ही अन्नपूर्णा की सोने या चांदी की मूर्ति के दर्शन करने की भी परंपरा है.
रंगभरी आमलकी एकादशी महादेव और श्रीहरि की कृपा देने वाला संयुक्त पर्व है. मान्यता है कि इस दिन पूजा-पाठ से अच्छी सेहत और सौभाग्य की प्राप्ति होती है.
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