विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र की आत्मा है, क्योंकि यही एक मात्र ऐसा तत्व है जो आम लोगों को स्वयं संप्रभु होने का एहसास प्रदान करता है। विचारधारा सामान्य नागरिक का, समाज का एवं विभिन्न संगठनों आदि का बौद्धिक प्राण तत्व है। विचार एवं विचारधारा ही व्यक्ति के सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक आदि व्यवहार व निर्णयों को आधार प्रदान करता है। लोकतंत्र स्वयं एक विचारधारा है जो मूल्य एवं संस्थाओं का रूप धारण कर व्यक्तियों को लोकतांत्रिक जीवनशैली एवं लोकतांत्रिक राजनीतिक संस्थाओं के निर्माण का विचार प्रदान करती है। जब बात विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की होती है तो उसमें प्रत्येक व्यक्ति की स्वतंत्रता स्वयं ही निहित होती है। चाहे अब वह विचार सहमति की हो अथवा असहमति की, दोनों ही समान रूप से लोकतंत्र में पवित्र है।
सत्य तो यह है कि लोकतंत्र को स्वस्थ्य रखने के लिए असहमति के विचार को ज्यादा महत्व दिया जाना चाहिए क्योंकि असहमति की स्वीकार्यता ही लोकतंत्र का प्राण है। अत: असहमति के सेफ्टी वॉल्व की अवधरणा सर्वाधिकारवादी शासन के लिए उचित कथन हो सकता है, परंतु भारत जैसे लोकतंत्र के लिए नहीं। कुछ विचार एवं विचारधारा समाज एवं राष्ट्र के निर्माण एवं कल्याण करने की परिधि को तोड़कर राष्ट्र के विनाश के लिए भी प्रयासरत रहती है। ऐसी विचारधारा को सहमति अथवा असहमति की परिधि से बाहर लाकर देखने की जरूरत होती है। लोकतंत्र की यह कैसी असहमति है जो देश की लोकतांत्रिक संस्था के सर्वोच्च पद पर आसीन व्यक्ति की हत्या के षडयंत्र रचने तक की स्वतंत्रता पाना चाहती है।
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