कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ चलाए गए आंदोलन की आड़ में किसान संगठनों के नेता जिला पंचायत चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। किसान नेताओं को उम्मीद है कि कृषि कानूनों के नाम पर किए गए आंदोलन का उन्हें लाभ मिलेगा और वे चुनाव जीत जाएंगे। लगभग सभी किसान संगठनों के नेता चुनाव में उतर रहे हैं।
जिला पंचायत चुनाव के लिए आरक्षण लागू हो गया है। चुनाव का आरक्षण लागू होने से पहले ही राजनीतिक दल इसकी तैयारी में जुटे हुए थे। चुनाव में सभी राजनीतिक दल मैदान में उतरेंगे, लेकिन इस बार राजनेता अकेले नहीं लड़ेंगे। किसान नेता भी चुनाव में उतर रहे हैं।
जिले में भाकियू, भाकियू भानु, भाकियू अंबावता, भाकियू लोकशक्ति, राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन आदि के पदाधिकारी चुनाव में कूद रहे हैं। कुछ किसान नेताओं ने हाल ही में प्रचार शुरू किया है तो कुछ काफी पहले से ही चुनाव की तैयारियों में जुट गए थे। इनमें से कुछ ही किसान लंबे समय से चुनाव की तैयारी कर रहे थे, जबकि कुछ किसान नेता अभी चुनाव के मैदान में कूदने की तैयारी में हैं।
इन किसान नेताओं को लगता है कि राजनीतिक दलों से किसान नाराज हैं और हाल ही में किसान उनके संपर्क में ज्यादा रहे हैं। ऐसे में समय-समय पर किसानों के लिए आंदोलन करने का इनाम उन्हें मिल सकता है। उन्हें लग रहा है कि राजनेताओं के बजाय इस बार गांवों की जनता किसान नेताओं को चुन सकती है। किसानों के आंदोलनों में भारी भीड़ जुटती है।
राजनीतिक दलों के नेताओं की नजर भी इन वोटरों पर थी। उन्हें लग रहा था कि ये वोटर चुनाव में उनका साथ देंगे, लेकिन किसान नेता इन राजनीतिक दलों के नेताओं के खेल को बिगाड़ रहे हैं।
भाकियू लोकशक्ति के जिलाध्यक्ष वीर सिंह सहरावत का कहना है कि उनके संगठन का कोई पदाधिकारी चुनाव नहीं लड़ रहा है। यह खुद की मर्जी पर निर्भर है, लेकिन किसान नेताओं को किसानों की आवाज ही उठानी चाहिए।