भगवान कृष्ण की लीलाओं से जुड़े प्रसंग और उस पर आधारित मंदिर कई देखे जा सकते हैं। प्रदेश में संभवत: अपने आप में अनूठे प्रसंग को दर्शाता इकलौता मंदिर खरगोन के जमींदार मोहल्ले में है। लगभग 250 साल पुराने मुरली मनोहर मंदिर में भगवान कृष्ण के साथ न केवल राधा बल्कि कंस की एक दासी कुब्जा की भी पूजा की जाती है।
कृष्ण की दीवानी थी कंस की दासी कुब्जा
उल्लेखनीय है कि राजा कंस की दासी कुब्जा मथुरा में निवास करती थी। एक पल ऐसा आया कि वह कृष्ण की दीवानी हो गई। यह प्रसंग पुराणों और इतिहास में दर्ज है। जन्माष्टमी पर इस मंदिर में भगवान कृष्ण के साथ राधा और दासी कुब्जा देवी की विशेष पूजा-अर्चना होती है। इसके लिए मंदिर को विशेष रूप से सजाया गया है।
कृष्ण को चंदन लेप लगाकर बनी भक्त
कृष्ण से जुड़ी लीलाओं और प्रसंगों में बताया गया कि कुबजा मथुरा में निवास करती थी। वह प्रतिदिन राजा कंस को चंदन का लेप भेंट करती थी। मंदिर के पुजारी पं. विजयकृष्ण शुक्ला ने बताया कि भगवान कृष्ण जब पहली बार मथुरा आए तो कुब्जा ने उन्हें देखा। वह देखती रह गई। बताया जाता है कि राजा कंस के लिए चंदन का तैयार किया गया लेप उसने भगवान श्रीकृष्ण को लगा दिया।
भगवान भी कुबजा के प्रेम को देखकर द्रवित हो गए। कृष्ण ने देखा कि दासी कुब्जा का शरीर पूरी तरह झुका हुआ (कूबड़) था। कृष्ण ने अपना पैर कुब्जा के पंजे पर रखा और हाथ से कुबजा को स्नेह दिया। देखते ही देखते दासी कुब्जा के शरीर की बनावट सहज हो गई। उसी दिन से वह कृष्ण की भक्ति में लीन हो गई। इसी उदारता और कुब्जा की आस्था का प्रतीक यह मंदिर यहां बना हुआ है।
कदंब के पेड़ की पूजा
इसी तरह तलाई मार्ग स्थित कृष्ण मंदिर परिसर में सैकड़ों वर्ष पुराने कदंब के पेड़ के प्रति भी भक्तों में काफी आस्था है। भक्त इसकी भी पूजा करते हैं।
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