ठंड से बचने के अनेक उपाय हैं, जिनमें से कुछ प्राकृतिक और सेहत से भरपूर भी हैं। ऐसे ही कुछ खास उपायों में प्रमुखता से शामिल हैं योगासन, जिनके अभ्यास से आप अपने शरीर की गर्माहट को सुरक्षित रख सकते हैं। यदि अभी से कुछ यौगिक अभ्यास नियमित रूप से किए जाएं तो ये बीमारियां हमें छू भी नहीं सकतीं। ऐसे उपायों के बारे में जानकारी दे रहे हैं।ठंड के मौसम ने दस्तक दे दी है। इस समय प्रदूषण भी काफी बढ़ रहा है। इस वजह से रोगों के होने की आशंका बहुत अधिक बढ़ जाती है। आमतौर पर इस मौसम में सर्दी, जुकाम, बुखार, खांसी आदि रोगों की आशंका अधिक होती है।
आसन: इस मौसम में शरीर का शोधन ज्यादा आवश्यक होता है। इसलिए ऐसे यौगिक व्यायाम, जो शरीर के विषाक्त तत्वों को बाहर निकालकर शरीर को स्वस्थ रखते हैं, का अभ्यास करना चाहिए। इनमें सूक्ष्म व्यायाम, सूर्य नमस्कार तथा कुछ प्रमुख आसन जैसे जानु शिरासन, पश्चिमोत्तानासन, उष्ट्रासन, सुप्त वज्रासन, मेरुवक्रासन आदि प्रमुख हैं, जिनका प्रतिदिन अभ्यास करना चाहिए।
जानु शिरासन की अभ्यास विधि
दोनों पैरों को सामने की ओर फैलाकर बैठ जाएं। कुछ लम्बी तथा गहरी श्वास-प्रश्वास लें। इसके पश्चात मन को स्थिर रखते हुए अपने बाएं पैर को घुटने से मोड़कर इसके तलवे को दाएं पैर की जांघ से अच्छी तरह सटा लें। दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठाकर धीरे-धीरे हाथ तथा धड़ को आगे की ओर इस प्रकार झुकाएं कि हथेलियां दाएं पैर के पंजे को स्पर्श करें तथा माथा दाएं पैर के घुटने पर स्थित हो। किसी प्रकार की जबरदस्ती न करें। इस स्थिति में आरामदायक अवधि तक रुककर वापस पूर्व स्थिति में आएं। इसके बाद यही क्रिया दूसरे पैर से तथा दोनों पैरों से एक साथ भी करें।
सीमा : स्लिप डिस्क, सायटिका, स्पॉन्डिलाइटिस तथा तीव्र कमर दर्द की शिकायत वाले लोग इसका अभ्यास न कर अर्धशलभासन, मकरासन का अभ्यास करें।
उपासन : इस आसन के अभ्यास के पश्चात पीछे झुकने वाला कोई आसन जैसे उष्ट्रासन, धनुरासन या सुप्त वज्रासन आदि में से किसी एक का अभ्यास अवश्य करें।
अगर आप बालों के झरने और डैंड्रफ से परेशान तो ठंड में बालों की ऐसे करें देखभाल…
योग में हैं 6 शोधन क्रियाएं
षटकर्म : शरीर के अंदर स्थित विषाक्त पदार्थों को निकालने हेतु योग में छह शोधन क्रियाए हैं, जिन्हें षटकर्म कहते हैं। इनमें कुछ सरल क्रियाएं हैं, जैसे जलनेति, कुंजल, कपालभाति आदि। इनका अभ्यास अवश्य करें, किन्तु अभ्यास किसी योग्य मार्गदर्शन में करें। इनसे सर्दी, जुकाम, खांसी, बुखार आदि की आशंका समाप्त हो जाती है।
प्राणायाम : कपालभाति, भस्त्रिका तथा अग्निसार के साथ नाड़ी शोधन प्राणायाम शरीर के विषाक्त तत्वों के निष्कासन के साथ प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाते हैं। प्रतिदिन नियमित रूप से इनका अभ्यास करना चाहिए। किन्तु सर्दी, जुकाम, बुखार आदि की स्थिति में इनका अभ्यास नहीं करें।
भस्त्रिका की अभ्यास विधि
ध्यान के किसी आसन जैसे पद्मासन, सिद्धासन, सुखासन या कुर्सी पर गला व सिर को सीधा कर बैठ जाएं। किन्तु पद्मासन या सिद्धासन सर्वश्रेष्ठ हैं। चेहरे को ढीला व हल्का रखकर शरीर के सभी अंगों को भी सहज रखें। अब दो तीन लम्बी तथा गहरी श्वास-प्रश्वास लें। उसके बाद मन को श्वास-प्रश्वास पर एकाग्र रखते हुए नासिका द्वारा झटके से लम्बी श्वास अंदर लें तथा झटके से ही लम्बी श्वास बाहर निकालें। भस्त्रिका प्राणायाम की यह एक आवृत्ति है। इसकी 15 से 20 आवृत्तियों का अभ्यास एक साथ करें। यह एक चक्र है। एक चक्र के बाद एक लम्बी तथा गहरी श्वास-प्रश्वास लेकर थोड़ी देर में विश्राम करें। एक दो मिनट बाद पुन: इसके एक चक्र का अभ्यास करें। प्रारम्भ दो से तीन चक्रों के अभ्यास से करें। कुछ दिनों के अंतराल पर चक्रों की संख्या बढ़ाते जाएं। अंतत: इसे पांच से 10 मिनट की अवधि में रखें।
सीमा : उच्च रक्तचाप, हृदय रोग, स्पॉन्डिलाइटिस, हर्निया तथा हाइपर थॉइरॉएड एवं हाइपर एसिडिटी से त्रस्त लोग इसका अभ्यास न करें। ऐसे लोग सरल नाड़ी शोधन का अभ्यास करें।
शिथिलीकरण : आज के इस भौतिक युग में भागदौड़, तनाव तथा अफरातफरी जीवन का हिस्सा बन गए हैं। इस कारण शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है। योग की शिथिलीकारण क्रिया, योग निद्रा, ध्यान आदि इसके निदान में रामबाण सिद्ध होती हैं।