मिर्ज़ा गालिब की हवेली, जहां यादों के साथ ही बसती है उनकी शायरी भी

उर्दू शायरी के शहंशाह मिर्ज़ा गालिब को जानना-समझना हो तो एक बार गालिब की हवेली में जरूर जाएं, तो अब गालिब म्यूज़ियम बन चुकी है। मिर्जा असदुल्ला बेग खां गालिब ने अपनी जिंदगी को आखिरी रात बल्लीमारान की इसी हवेली में काटी थी।

 

हवेली का इतिहास

पुरानी दिल्ली स्थित भीड़भाड़ भरी संकरी सी गली में बना हुई है गालिब की हवेली। अंदर घुसते ही दीवारों पर न सिर्फ गालिब के अशआर नज़र आते हैं बल्कि उनके समकालीन उर्दू के कई अज़ीम शायरों के चित्र और शायरियां भी दिख जाती हैं।

उत्तर प्रदेश के आगरा में जन्में मिर्जा गालिब शादी के बाद दिल्ली आ गए थे और बाद में लगभग 9 सालों तक इसी हवेली में उनका निवास बना रहा।

यहां रहने के दौरान उन्होंने उर्दू शायरी में एक से बढ़कर एक नगीने जोड़े। उसी दौरान उन्होंने उर्दू और फारसी में ‘दीवान’ की रचना की। उनकी मृत्यु के बाद हवेली में साल 1999 तक बाजार लगता था और भी कई कारोबारी कामों के लिए इसका इस्तेमाल होने लगा था। लंबे-चौड़े क्षेत्रफल में फैली यह हवेली अपना वजूद ही खोने लगी थी। न जाने कितने नाजायज कब्जों के बाद आखिरकार लोगों को इस हवेली की सुध आई और तब साल 1999 के बाद सरकार ने इसे राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर दिया। इसके बाद हवेली का पुर्ननिर्माण कराया गया जिससे मुगल सल्तनत की इस अनमोल धरोहर को इसके पूर्व रूप में वापस लाया जा सके। हवेली को अलग लुक देने के लिए मुगल लखोरी, ब्रिक्स, सैंड स्टोन और लकड़ी के दरवाजे का इस्तेमाल किया गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने इस इमारत का ऐलान विरासत के तौर पर किया है।

सहेजे हुए है बहुत कुछ

बड़े से दरवाजे से होकर अंदर जाते ही सबसे पहले नज़र आती है गालिब के संगमरमरी बुत पर, जिसके साथ उनकी कई किताबें भी रखी हुई हैं। गालिब और उनके परिवार द्वारा इस्तेमाल किए गए सामानों, बर्तनों और कपड़ों को शीशे के फ्रेमों में दिखाया गया है। इसके अलावा चौसर, शतरंज की बिसातें भी यहां मौजूद हैं। हवेली के बड़े से गलियारे में गालिब की आदमकद पेंटिंग हैं, जिसमें वह हुक्का पीते हुए दर्शाए गए हैं। हवेली की दीवारों पर गालिब और उनकी शायरियां उर्दू और हिंदी में नज़र आ जाती हैं। गालिब के अलावा उनके समकालीन कई अन्य शायरों के चित्र भी यहां मौजूद हैं। इनमें मुख्य रूप से उस्ताद जौक, हकीम मोमिन खां ‘मोमिन’ और अबू जफर हैं। गालिब की मूर्ति का उद्घाटन 2010 में किया गया था। इसे मशहूर मूर्तिकार रामपूरे ने बनाया है।

हर साल 27 दिसंबर को गालिब के जन्मदिन के मौके पर यहां मुशायरे का आयोजन होता है।

अवकाश – सोमवार

एंट्री – फ्री

फोटोग्राफी – निःशुल्क

नज़दीकी मेट्रो स्टेशन – चावड़ी बाजार

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