13 जनवरी को लोहड़ी के साथ ही त्योहारों की धूम प्रारंभ हो जाएगी। 13 जनवरी को धूमधाम के साथ लोहड़ी मनाई जाएगी। इसके बाद 15 जनवरी को मकर संक्रांति और पोंगल एक साथ मनाए जाएंगे।
इन पर्व के साथ ही देशभर में विभिन्न त्योहारों को मनाने का क्रम प्रारंभ हो जाएगा। मकर संक्रांति के दिन लोग अपने घरों में मंगौड़े-पकौड़ी और तिल-गुड़ का सर्वाधिक उपयोग करते हैं। मकर संक्रांति के दिन 6 प्रकार से तिल का उपयोग किया जाता है। इस दिन तिल का उबटन किया जाता है। तिल मिले जल में स्नान, तिल का हवन, तिल गुड़ का खाना। इस दिन नदी में स्नान किया जाता है।
पौराणिक कथा के अनुसार महाभारत काल में पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही अपनी इच्छा से शरीर का परित्याग किया। मकर संक्रांति के दिन ही गंगा जी भागीरथ ऋृषि के पीछे-पीछे चलकर कपिल ऋृषि के आश्रम में आई थीं।
मकर संक्रांति का महापुण्यकाल सुबह 7 बजकर 19 मिनट से सुबह 9 बजकर 3 मिनट तक रहेगा। पुण्यकाल सुबह 7 बजकर 19 मिनट से 12 बजकर 30 मिनट तक रहेगा।
ज्योतिषाचार्य गौरव उपाध्याय के अनुसार मकर संक्रांति का पर्व वैसे 14 जनवरी को मनाया जाता है। लेकिन निर्णय सागर पंचांग के अनुसार इस वर्ष सूर्य देव 15 जनवरी को सुबह 2 बजकर 6 मिनट पर मकर राशि में प्रवेश करेंगे।
इसके चलते इस बार यह पर्व 15 जनवरी को मनाया जाएगा। इस दिन सूर्य देव धनु राशि को छोड़कर अपने पुत्र शनिदेव की मकर राशि में प्रवेश करते हैं।
यह पर्व पिता पुत्र के अनोखे मिलन को भी प्रदर्शित करता है। मकर संक्रांति को देवताओं का दिन कहा जाता है क्योंकि मकर संक्रांति से दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं।
वहीं मकर संक्रांति के पर्व को भारत के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। जिसमें पंजाब हरियाणा में लोहडी व दक्षिण भारत में पोंगल के नाम से जाना जाता है। जबकि मध्यभारत में इसे मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। यह पर्व नए फसल की खुशियों के रूप में मनाया जाता है।
सूर्यदेव के बृहस्पति की धनुराशि में आने पर खरमास का प्रारंभ हो जाता है तथा सूर्यदेव के मकर राशि में प्रवेश करते ही खरमास समाप्त हो जाता है। खरमास में शादी विवाह तथा अन्य मांगलिक कार्य प्रारंभ हो जाते हैं। मकर संक्रांति दिन दान-पुण्य स्नान, श्राद्घ तर्पण आदि का विशेष महत्व होता है।