बात जब जर, जोरू और जमीन की होती है, तो कोई भी रिश्ता छोटा हो जाता है। बेरुखी इतनी बढ़ जाती है कि रिश्तों का खून होते देर नहीं लगती। प्यार वफा सब एक चुटकी में दम तोड़ देते हैं। फिर सामने दिखती है सिर्फ पैसे की हवस। जो इंसान को इतना अंधा बना देती है कि वो किसी भी हद तक जा सकता है। कहा जाता है एक जमाने में मैसूर राजघराने के दीवान की बेटी बेहद खूबसूरत थी। जिसने उसे देखा वो उसका दीवाना होगा। लेकिन उसका दिल ऐसे फरेबी पर आया की पहले तो उसने उसको बेपनाह मोहब्बत का झूठा सपना दिखाया। फिर एक दिन उसे जिंदा चुनवा दिया। उसकी नफरत इतनी बढ़ गई थी। कि उसने उसे मारने की भी जरूरत नहीं समझी और जिंदा ही कब्र चुनवा दिया। फिर रोज पार्टी करता रहा, नीचे कब्र थी और वो ऊपर शराब पीकर नाचता रहा।
जी हां, हम बात कर रहे हैं, देश में अपने समय में डान्सिंग ऑन ग्रेव के नाम से जानी गई शाकिरा नमाजी खलीली की मर्डर मिस्ट्री की। वही शाकिरा नमाजी खलीली जो मैसूर राजघराने के दीवान की बेटी जिसकी शादी अकबर मिर्जा खलीली से शादी हुई। जो रिटायर्ड आईएफएस अफसर और ऑस्ट्रेलिया में हाई कमिश्नर रह चुके थे। दोनों की शादी 25 साल चली और दोनों के चार बेटियां भी हुईं। लेकिन अचानक शाकिरा की जिंदगी में मुरली मनोहर मिश्र नाम का शख्स आ गया। जिसने शकीरा का मन मोह लिया। मुरली एक राजपरिवार में नौकर था।
टैक्स और प्रॉपर्टी का मास्टर मुरली भी धीरे-धीरे स्वामी श्रद्धानंद बन गया। इधर शाकिरा को बेटे की कमी खल रही थी। बेटे की मुराद पूरी करवाने का झांसा शकीरा को फंसाने के लिए काफी था। बेटे के लिए शाकिरा कुछ भी करने को तैयार थी। शाकिरा ने एक झटके में पति को तलाक दे दिया, और स्वामी से शादी कर ली। फिर दोनों बेंगलुरु शिफ्ट हो गए चार बेटियों में से तीन बेटियां शाकिरा से अलग हो गईं। जबकी सबसे छोटी मॉडलिंग के लिए मुंबई चली गई।
पांच साल तक तो सबकुछ ठीक रहा, लेकिन एक दिन छोटी बेटी को सूचना मिली की शाकिरा गायब हो गई। छोटी बेटी सबा बेंगलुरु आई, सबा और स्वामी ने खूब खोजबीन की। लेकिन वो नहीं मिली। एक दिन स्वामी ने बताया कि सबा को बताया की शाकिरा प्रेग्नेंट है और अमेरिका के रूजवेल्ट हॉस्पिटल में भर्ती है। मां सबा ने रूजवेल्ट हॉस्पिटल में पता किया तो वहां शाकिरा नाम की कोई महिला एडमिट ही नहीं थी। सबा समझ गई कि स्वामी उससे कुछ छुपा रहा है। उसने लिहाजा उसने मां की गुमशुदगी पुलिस में दर्ज करा दी।
पुलिस को भी स्वामी पर शक था, लेकिन रसूख के चलते सख्ती नहीं कर सकी। कोई सुराग नहीं मिलने पर पुलिस केस बंद करने की तैयारी में थी। तभी शाकिरा की तलाश पूरी हो गई। 29 अप्रैल 1994 को बेंगलुरु क्राइम ब्रांच के कॉस्टेबल को शराब के ठेके पर नशे में धुत व्यक्ति ने बताया शाकिरा जिंदा नहीं है। पुलिस ने जब पता किया तो वो स्वामी का नौकर निकला उसने बताया कि स्वामी ने शाकिरा को जिंदा ताबूत में बंद कर दफना दिया।
नौकर के कबूल नामे के बाद स्वामी ने शाकिरा की हत्या का जुर्म कबूल कर लिया। उसने बताया कि उसकी दौलत के लिए उसने प्यार और शादी की थी। लेकिन शाकिरा सारी दौलत चारों बेटियों को देने वाली थी। इसी लिए 28 अप्रैल 1991 को स्वामी ने घर के सारे नौकरों को छुट्टी दे दी। फिर चाय में बेहोशी की दवा मिलाकर शाकिरा को पिला दी। बेहोश होने पर उसने गद्दे में लपेटकर ताबूत में डाला और जिंदा ही दफना दिया। उसके टाइल्स लगवा दिए और तीन साल अपनी बीवी की कब्र के ऊपर रातों में पार्टी और शराब पीकर दोस्तों के साथ नाचता रहा।
पुलिस ने जब ताबूत निकाल कर देखा तो नाखून की खंरोच के निशान भी मिले। जिससे अंदाजा लगाया गया कि होश में आने के बाद शाकिरा ने बाहर निकलने की कोशिश की ताबूत से बरामद अंगूठियों और चूड़ियों से शाकिरा की शिनाख्त हुई। और सुप्रीम कोर्ट से स्वामी को उम्र कैद। स्वामी आज भी कर्नाटक के बेलगाम जेल में बंद है।