मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा बिहार में आरक्षण की सीमा को बढ़ाकर 65 प्रतिशत करने के मामले को पटना हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है। गौरव कुमार और नमन श्रेष्ठ ने एक जनहित याचिका दायर की। याचिका में याचिकाकर्ता की ओर से बिहार में आरक्षण (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े और अति पिछड़े वर्गों के लिए) (संशोधन) अधिनियम, 2023 और बिहार (शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश में) आरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है। याचिकाकर्ता इन पर तत्काल रोक लगाने की भी मांग की। बता दें कि 10 नवंबर 2023 को बिहार विधान मंडल में संशोधन बिल पास किया गया। इसके बाद 18 नवंबर को राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ अर्लेकर ने इस बिल को मंजूरी दे दी थी।
नियुक्ति के समान अधिकार का उल्लंघन करता है
याचिकाकर्ता की ओर से दायर याचिका में कहा गया है कि संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार, सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी। न कि जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने का प्रावधान। यह जो 2023 का संशोधित अधिनियम बिहार सरकार ने पारित किया है, वह भारतीय संविधान के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। इसमें सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के समान अधिकार का उल्लंघन करता है, वहीं भेद भाव से संबंधित मौलिक अधिकार का भी उल्लंघन है।
जानिए, किस वर्ग के आरक्षण में कितना इजाफा किया बिहार सरकार ने
- अनुसूचित जाति को दिए गए 16 प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर 20 प्रतिशत किया गया।
- अनुसूचित जनजाति को को दिए गए एक प्रतिशत आरक्षण को बढ़ाकर अब दो प्रतिशत किया गया।
- पिछड़ा वर्ग को 12 प्रतिशत को बढ़ाकर 18 प्रतिशत और अति पिछड़ा को दिए गए 18 फीसदी आरक्षण को बढ़ाकर 25 फीसदी किया गया।
21 नवंबर को बिहार सरकार ने गजट प्रकाशित किया था
बिहार सरकार ने आरक्षण संशोधन बिल के जरिए आरक्षण दायरा बढ़ा 65 फीसदी कर दिया। 10 प्रतिशत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को मिलने वाले आरक्षण को जोड़ दें जो कुल 75 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलेगा। 21 नवंबर को बिहार सरकार ने इसको लेकर गजट प्रकाशित कर दिया। अब से शिक्षण संस्थानों और नौकरी में अनुसूचित जाति/जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अतिपिछड़ा को 65 फीसदी आरक्षण का लाभ मिलेगा।
Live Halchal Latest News, Updated News, Hindi News Portal