पितृपक्ष मेला पर लगी रोक, जो प्‍लेग न कर सका वो कर गया कोरोना

अगर श्राद्ध का महाकुंभ कहीं नजर आता है तो वह गया में। यह वही स्थान है, जहां लोग देश-विदेश से अपने पूर्वजों को मोक्ष दिलाने के लिए प्रत्येक वर्ष पितृपक्ष में पिंडदान करने आते हैं। लोग गयाधाम आकर फल्गु नदी के पवित्र जल से पिंडदान व तर्पण करते हैं। कोरोना महामारी को लेकर सरकार ने इस बार पितृपक्ष मेले पर रोक लगा दी है। साल 1929 में प्‍लेग कर महामारी के दौरान भी पितृपक्ष मेला जारी रहा था, लेकिन कोरोना ने इसपर ब्रेक लगा दिया है। मेले पर रोक से पंडा समाज नाराज है। उसका सवाल है कि अगर कोरोना के कारण पितृपक्ष मेला पर रोक लगाई गई है तो विधानसभा चुनाव पर रोक क्‍यों नहीं लगाई जा रही है? मेला एक सितंबर से प्रारंभ होकर 17 सितंबर तक चलना था।

पितृपक्ष का एक वर्ष  करते इंतजार, कोर्ट में लगाएंगे गुहार

गयापाल पुरोहित राजन सिजुआर ने कहा कि पितृपक्ष का एक वर्ष से वे लोग इंतजार करते हैं, क्योंकि  दान-दक्षिणा से ही एक वर्ष तक उनका काम चलता है। पितृपक्ष मेला स्थगित करने से अच्छा होता कि सरकार गाइडलाइन के अनुसार पिंडदान करने का आदेश देती। उन्‍होंने कहा कि पंडा समाज आर्थिक मदद के लिए कोर्ट की शरण में जाएगा।

1929 के प्लेग में भी पितृपक्ष मेले पर नहीं लगी थी रोक

श्री विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के सदस्य महेश लाल ने कहा, सौ वर्ष के इतिहास में पहली बार पितृपक्ष मेला पर सरकार ने रोक लगाई है। 1929 ई. की प्लेग महामारी में भी पितृपक्ष मेले पर रोक नहीं लगी थी। विष्णुपद मंदिर भी बंद है, जिससे तीर्थयात्री काफी कम आ रहे हैं।

प्रतिबंध के कारण दो से ढाई लाख लोग होंगे प्रभावित

गयापाल पुरोहित देवनाथ मेहरवार दाड़ीवाले कहते हैं कि पितृपक्ष मेला पर प्रतिबंध लगने से गया में दो से ढाई लाख लोग प्रभावित होंगे, जिनमें पंडा समाज के अलावा काम करने वाले कर्मचारी व पटवा समाज के लोग भी शामिल हैं। वहीं भारतीय जनता पार्टी के पूर्व जिला महामंत्री व गयापाल पुरोहित शिवकुमार कहते हैं कि शारीरिक दूरी का हवाला देते हुए अगर सरकार ने धार्मिक स्वतंत्रता पर रोक लगाई है तो पितृपक्ष मेले की तरह विधानसभा चुनाव को भी टाल दिया जाना चाहिए।

 

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