आजकल पितरों को खुश करने का पर्व चल रहा है। यह साल में एक बार तकरीबन 15 दिनों तक मनाया जाता है। इस बार शनिवार, 28 सितंबर को अमावस्या को पितृपक्ष का आखिरी दिन है इस दिन पितरों को मोक्ष की प्राप्ति की जाती है। इन दिनों में पितरों के लिए श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि शुभ काम किए जाते हैं।

परिवार के मृत सदस्य की मृत्यु तिथि पर श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध तिथि के एक दिन पहले ही अपनी शक्ति के अनुसार ब्राह्मण या ब्राह्मणों को घर पर भोजन के लिए आमंत्रित करना चाहिए। ब्राह्मण के देखरेख में नियम अनुसार श्राद्ध करना ज्यादा शुभ रहता है।
श्राद्ध के लिए सबसे अच्छा समय दोपहर का रहता है। 12 बजे बाद श्राद्ध कर्म प्रारंभ करना चाहिए।
श्राद्ध पक्ष में आमंत्रित किए गए ब्राह्मणों को भोजन के लिए दक्षिण दिशा में बैठाना चाहिए। ये दिशा पितरों की मानी जाती है। इस दिशा में कराए गए भोजन से पितरों को तृप्ति मिलती है। ऐसी मान्यता है।
भोजन और दान-दक्षिणा के बाद ब्राह्मणों को आदरपूर्वक घर के दरवाजे तक छोड़ने जाना चाहिए। इस संबंध में मान्यता है कि ब्राह्मणों के साथ पितर भी आते हैं और जब वे जाते हैं तो उनके साथ पितृ भी हमारे घर से चले जाते हैं।
पितरों के लिए भोजन बनाते समय उनकी प्रिय चीजें जैसे दूध, दही, घी और शहद का उपयोग जरूर करना चाहिए। इन चीजों के उपयोग से स्वादिष्ट भोजन बनाएं।
खाने में से कुछ हिस्सा गाय, कुत्ते, कौए, देवता और चींटियों के लिए निकलना चाहिए। कुत्ते और कौए के लिए निकाला गया भोजन कुत्ते और कौए को ही खिलाना चाहिए। ये खाना किसी और को देने से बचें। देवता और चींटियों के लिए निकाला गया भोजन गाय को खिला सकते हैं।
श्राद्ध शुरू करने से पहले हाथ में जल, अक्षत यानी चावल, चंदन, फूल और तिल लेकर संकल्प लेना चाहिए। इसके लिए ब्राह्मण की मदद ले सकते हैं।
ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद उनके माथे पर तिलक लगाएं और अपनी शक्ति के अनुसार कपड़े, अन्न और दक्षिणा दान करें।
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