अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग एक दूसरे के आमने-सामने होंगे। राष्ट्रपति बनने के बाद जो बाइडन पहली बार इंडोनेशिया के बाली में चीनी राष्ट्रपति चिनफिंग से मुलाकात करेंगे। दोनों नेताओं के बीच मुलाकात ऐसे समय हो रही है, जब ताइवान को लेकर दोनों देशों के बीच तनाव चरम पर है। ऐसे में दुनिया की नजर इन दोनों नेताओं की मुलाकात पर टिकी है। यह उम्मीद की जा रही है कि दोनों नेता अमेरिका व चीन के बीच बढ़ते तनाव को घटाने के लिए वार्ता करेंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बाइडन और चिनफिंग कोई नया इतिहास रचने की तैयारी में हैं। क्या ताइवान समस्या का समाधान निकल सकता है। आखिर दोनों नेताओं की मुलाकात के क्या मायने हैं।
दोनों नेताओं के मुलाकात के क्या है मायने
1- विदेश मामलों के जानकार प्रो हर्ष वी पंत का कहना है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन और चिनफिंग के बीच मुलाकात ऐसे समय हो रही है, जब अमेरिका और चीन के रिश्ते सबसे निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। इस वर्ष अमेरिकी कांग्रेस की अध्यक्ष नैंसी पेलोसी की ताइवान यात्रा के बाद दोनों देशों में जंग जैसे हालात उत्पन्न हो गए थे। चीन ने यहां तक धमकी दी थी कि वह नैंसी के विमान को ताइवान में नहीं उतरने देगा।
इसके बाद से दोनों देशों के संबंध काफी तल्ख हो गए हैं। बाइडन के पूर्व डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में चीन और अमेरिका के रिश्ते काफी खराब हो गए थे। राष्ट्रपति चुनाव के दौरान बाइडन ने चीन के साथ संबंधों को सहज करने की बात कही थी। हालांकि, बाइडन के राष्टपति बनने के बाद भी ताइवान मुद्दे को लेकर तनाव बरकरार है।
2- प्रो पंत ने कहा कि चीन वन चाइना नीति के तहत ताइवान को अपने देश का अभिन्न अंग मानता है। उधर, अमेरिका चीन की वन चाइना नीति को तो मानता है, लेकिन ताइवान पर वह चीन का नियंत्रण नहीं चाहता है। बाइडन के पूर्व ट्रंप ने ताइवान को खुला समर्थन दिया था। ट्रंप ने कहा था कि अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो अमेरिका उसका पूरा बचाव करेगा। राष्ट्रपति बनने के काफी समय बाद बाइडन ने अपनी ताइवान नीति को स्पष्ट किया था। शुरुआत में उन्होंने ताइवान पर अपनी नीति को स्पष्ट नहीं किया था। चीन के आक्रामक रवैये के बाद उन्होंने अपने प्रशासन की नीति का खुलासा किया। अब बाइडन प्रशासन का स्टैंड साफ है, अगर चीन ताइवान पर हमला करता है तो अमेरिका उसका बचाव करेगा।
3- उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं कि दोनों नेताओं की मुलाकात के बाद कोई चमत्कार होगा और ताइवान समस्या का हल निकल आएगा। ऐसा भी नहीं कि चीन अपने एजेंडे से पीछे हट जाएगा। प्रो पंत ने कहा कि चीनी कांग्रेस की बैठक में चिनफिंग ने ताइवान पर जो सख्त रुख अपनाया था, उससे यह कतई नहीं लगता चीन ताइवान का एजेंडा छोड़ देगा। उधर, अमेरिका व पश्चिमी देश अपनी ताइवान पालिसी में कोई बदलाव करने वाले नहीं है।
ऐसे में दोनों नेताओं की यह मुलाकात एक औपचारिकता ही होगी। अलबत्ता, दोनों नेताओं की मुलाकत का कूटनीतिक महत्व होगा। दोनेां देशों के बीच एक संवाद शुरू होगा। संबंधों में तनाव कम करने की कोशिश होगी। राष्ट्रपति चुनाव के समय बाइडन का यह एजेंडा भी था।
चिनफिंग से मुलाकात के पहले बाइडन ने कही ये बात
दस नवंबर को अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने कहा था कि मैं ताइवान के मामले में चिनफिंग से वार्ता करूंगा। ताइवान समस्या का हल निकालने की कोशिश करूंगा। बाइडन ने साफ किया था कि फिलहाल ताइवान पर बाइडन की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। उन्होंने जोर देकर कहा था कि अगर ताइवान चीन पर हमला करता है तो अमेरिका शांति नहीं रहेगा। अमेरिका, ताइवान की सुरक्षा करेगा। वह ताइवान की सुरक्षा के लिए संक्लपित है। बता दें कि ताइवान और अमेरिका के बीच रक्षा करार है। इस करार के तहत यदि ताइवान पर कोई देश हमला करता है तो अमेरिका उसकी सुरक्षा करेगा। इस रक्षा करार के तहत ही अमेरिका, ताइवान की सुरक्षा के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।
1949 के बाद चीन और ताइवान अलग-अलग
गौरतलब है कि 1949 में गृहयुद्ध के दौरान ताइवान और चीन एक दूसरे से अलग हो गए थे। हालांकि, चीन इस द्वीप पर अपना दावा करता आया है। इसके चलते चीन की कम्युनिस्ट पार्टी ताइवान सरकार की हर कार्रवाई का विरोध करती है। चीन ताइवान को अलग-थलग करने के लिए कूटनीतिक और सैन्य ताकत का इस्तेमाल भी करता रहा है। चीन ने अमेरिका से भी कई बार आग्रह किया है कि वह ताइवान कार्ड खेलना बंद करे। हांगकांग पर कब्जे के बाद चीन के हौसले बुलंद है और वह अब ताइवान पर कब्जे की तैयारी चल रही है।