हिंदी सिनेमा का इन दिनों नायिका काल चल रहा है। पहले तानाजी द अनसंग वॉरियर के सामने छपाक और अब स्ट्रीट डांसर 3 डी के सामने पंगा। ये दीपिका पादुकोण और कंगना रनौत जैसी नायिकाओं के ही बस में है कि वे अजय देवगन और वरुण धवन जैसे नामचीन, फिल्मी परिवारों से आए और इंडस्ट्री के पुराने मठाधीशों के समर्थन से बनी फिल्मों से सीधे पंगा लेने का दम रखती हैं। छपाक और पंगा दोनों का निर्माण एक विदेशी कंपनी ने किया है और उठाए हैं ऐसे मुद्दे जो देश की नब्ज परखने का माद्दा रखते हैं। पंगा नए साल का नया सिनेमा है, इसे देखना खुद को जीवन की दौड़ में पूरे जोश से नया धक्का देने से कम नहीं है।

फिल्म पंगा एक बात और बताती है जिसकी तरफ देश में खेल नीतियां बनाने वालों को जरूर ध्यान देना चाहिए। क्या किसी खिलाड़ी का नेशनल खेलना या इंटरनेशनल खेलना सिर्फ इसलिए होता है कि उसे कहीं कोई सरकारी नौकरी मिल जाए? क्या ये सरकार की जिम्मेदारी नहीं कि देश के लिए मेडल जीतकर लाने वालों के परिवार का भरण पोषण वह खुद करे और ऐसे खिलाड़ियों के परिवारों को राष्ट्रीय परिवार मानने की जिम्मेदारी उठाए?
पंगा ऐसी ही एक कबड्डी खिलाड़ी जया निगम की कहानी है। कबड्डी टीम की कप्तान रही ये खिलाड़ी अब रेलवे में नौकरी करती है। 32 साल की है। एक बेटे और एक पति के साथ भोपाल में रहती हैं। ये दोनों ही उसके सपनों को फिर से जिंदा करने का सबब बनते हैं। लेकिन, 32 साल की उम्र में किसी खिलाड़ी की मैदान पर वापसी आसान नहीं होती। पंगा इन्हीं मुश्किलों से पार पाने की कहानी है।
दंगल और छिछोरे जैसी फिल्मों के निर्देशक नितेश तिवारी की पत्नी अश्विनी अय्यर को अपनी हर फिल्म में अपने पति की भरपूर मदद मिली है। अश्विनी की अपनी कहानी जया निगम जैसी ही कहानी है। जीवन का ये अनुभव उनके काम निल बटे सन्नाटा और बरेली की बर्फी में पहले भी काम आ चुका है। पंगा में अश्विनी ने अपनी जड़ों को नए प्रवाह के जल से सींचा है। हकीकत के बिल्कुल करीब रहते हुए, बिना किसी ग्लैमर की चादर ओढ़े फिल्म पंगा अपने कलाकारों की कूवत को बिल्कुल मानवीय तरीके से परदे पर पेश करती है।
कंगना रनौत हिंदी सिनेमा की सबसे ज्यादा फीस लेने वाली अभिनेत्री हैं या नहीं, इस पर बहस हो सकती है। लेकिन, इस बात पर बहस की कोई गुंजाइश नहीं है कि वह हिंदी सिनेमा की इस कालखंड की चंद बेहद प्रतिभावान अभिनेत्रियों में एक हैं। उनका परदे पर आना एक करिश्मा होता है। तनु वेड्स मनु, क्वीन और पंगा जैसी फिल्में उनके भीतर सुलगते रहने वाले कलाकार का विस्फोट बनती हैं। उनके किरदार का हर संवाद फिल्म पंगा को एक नई ऊंचाई तक ले जाता है। फिल्म में ऋचा चड्ढा एक मार्गदर्शक की भूमिका में दमदार दिखी हैं। उनके साथ ही मेघा बर्मन, स्मिता तांबे और नीना गुप्ता ने भी फिल्म को कबड्डी कबड्डी की आखिरी सांस तक खींच लाने में मजबूत सहारा दिया है।
नींद में लातें मारने वाली पत्नी के पति के किरदार में जस्सी गिल भी अपना प्रभाव छोड़ जाते हैं। फिल्म का सबसे मजेदार किरदार है जया निगम के बेटे का रोल करने वाले यज्ञ भसीन का। उसका हर संवाद चुटीला है और असरकारक है, जैसे, “भगवान का रूप हूं, झूठ नहीं बोलूंगा। आपको गंगा नहाने का मौका दे रहा हूं।” नितेश तिवारी, निखिल मल्होत्रा और खुद अश्विनी ने फिल्म पंगा को जैसा लिखा, वैसा ही अश्विनी ने इसे फिल्माने में कामयाबी पाई। हर छोटे बड़े किरदार को अपनी प्रतिभा दिखाने का मौका अश्विनी ने इस फिल्म में दिया है।