रोमांच के शौकीनों के लिए विश्व पर्यटन दिवस खास रहा। पहली बार 25 पर्यटकों ने एतिहासिक गर्तांगली की सैर कर रोमांच का अहसास किया। दुनिया के सबसे खतरनाक रास्तों में शुमार इसी मार्ग से एक दौर में भारत-तिब्बत के बीच व्यापार हुआ करता था।
उत्तरकाशी जिले में समुद्रतल से 11 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है गर्तांगलि। भारत-चीन सीमा पर जाड़ गंगा घाटी में स्थित सीढ़ीनुमा यह मार्ग वास्तु का अद्भुत नमूना है। कहा जाता है कि करीब 300 मीटर लंबे इस मार्ग का निर्माण 17वीं सदी में पेशावर से आए पठानों ने चट्टान को काटकर किया था। 1962 के भारत-चीन युद्ध से पहले व्यापारी इसी रास्ते से ऊन, चमड़े से बने वस्त्र व नमक लेकर तिब्बत से बाड़ाहाट (उत्तरकाशी) पहुंचते थे। युद्ध के बाद इस मार्ग पर आवाजाही बंद हो गई। वर्ष 1975 में सेना ने भी इस रास्ते का इस्तेमाल बंद कर दिया। तब से यह वीरान पड़ा हुआ था।
वर्ष 2017 में विश्व पर्यटन दिवस पर प्रदेश सरकार की ओर से पर्यटकों को गर्तांगली जाने की अनुमति दी गई। इसी कड़ी में गुरुवार सुबह 25 पर्यटक जिला मुख्यालय उत्तरकाशी से 90 किमी गंगोत्री की ओर भैरवघाटी स्थित लंका पहुंचे
यहां से खड़ी चट्टानों के बीच होकर ढाई किमी की पैदल ट्रैकिंग गर्तांगली के लिए शुरू हुई। गर्तांगली पहुंचने पर पर्यटकों ने अहसास किया कि कभी कैसे इस जोखिमभरे रास्ते से दो देशों के बीच व्यापार होता रहा होगा।
वेयर ईगल डेयर ट्रैकिंग संस्था के संचालक तिलक सोनी ने कहा कि गर्तांगली हमारी एक एतिहासिक धरोहर है। गर्तांगली की सैर करने वाले पर्यटकों में रेडक्रॉस सोसाइटी के चेयरमैन शैलेंद्र नौटियाल, माधव जोशी, उपेंद्र सजवाण, अविनाश नरोना आदि शामिल थे।
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