महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री ने शिवसेना (यूबीटी) अध्यक्ष पर निशाना साधने के लिए रोमन सम्राज नीरो का जिक्र किया। उन्होंने उद्धव का नाम लिए बिना कहा कि कुछ लोग अपनी पार्टी छोड़ने पर जश्न मना रहे हैं। हमने इस तरह का व्यवहार पहले कभी नहीं देखा।
महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने रविवार को शिवसेना (यूबीटी) अध्यक्ष उद्धव ठाकरे पर निशाना साधा। इसके लिए उन्होंने रोमन सम्राट नीरो और उनसे जुड़ी एक लोकप्रिय किंवदंती का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि जब रोम जल रहा था, नीरो बांसुरी बजा रहा था।
शिंदे ने ठाणे में चिकित्सा उद्यमियों को सम्मानित करने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने विपक्ष के चुनाव हारने पर चुनाव आयोग की आलोचना पर भी सवाल उठाया। उन्होंने कहा कि जब कुछ लोगों को हार मिलती है, तो वे चुनाव आयोग पर सवाल उठाने लगते हैं, लेकिन जब जीतते हैं तो उसी की तारीफ करते हैं।
आत्मनिरीक्षण के बजाय, आरोप-प्रत्यारोप में लगे हैं कुछ नेता
शिंदे ने उद्धव का नाम लिए बिना कहा, ‘यह अजीब है कि कुछ लोग अपनी पार्टी (शिवसेना-यूबीटी) छोड़ने पर जश्न मना रहे हैं। हमने इस तरह का व्यवहार पहले कभी नहीं देखा। ‘जब रोम जल रहा था, नीरो बांसुरी बजा रहा था।’ उन्होंने कहा कि आत्मनिरीक्षण करने के बजाय, कुछ नेता सिर्फ आरोप-प्रत्यारोप में लगे हैं और दूसरों को कोस रहे हैं।
शिंदे ने महायुति सरकार की उपलब्धियों पर डाला प्रकाश
शिंदे ने महायुति सरकार की उपलब्धियों, खासकर महिलाओं के लिए योजनाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, ‘हमने 2.5 करोड़ बहनों के लिए ऐतिहासिक योजनाएं बनाई हैं। कई लोगों ने सत्ता हासिल करने की कोशिश की और पहले से ही पांच सितारा होटल और मंत्रालय बुक कर लिए। लेकिन जनता ने, खासकर हमारी बहनों ने उनके सपनों को चकनाचूर कर दिया और महायुति को फिर से सत्ता में ला दिया।’ उन्होंने आगे कहा कि वह खुद को एक ऐसे पार्टी कार्यकर्ता के रूप में पहचानते हैं जो 24 घंटे उपलब्ध रहता है।
शिंदे ने डॉक्टरों की भूमिका की भी सराहना की
उपमुख्यमंत्री ने कोविड-19 महामारी जैसे संकट के दौरान समाज में डॉक्टरों की भूमिका की भी सराहना की। डॉक्टरों पर हमलों का ज़िक्र करते हुए, शिंदे ने कहा कि चिकित्सा बिरादरी समाज का आधार है और गहरे सम्मान की पात्र है। उन्होंने आगे कहा, ‘कभी-कभी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं घटित होती हैं और डॉक्टरों के सर्वोत्तम प्रयासों के बावजूद, जान नहीं बचाई जा सकती। ऐसे समय में, समाज को चिकित्सा पेशेवरों को निशाना बनाने के बजाय जिम्मेदारी से काम करना चाहिए।’
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