चुनाव से पहले बदले कांग्रेस के तेवर, कैप्टन की घुड़की के बाद बगावती होंगे पार्टी से बाहर

चुनाव से पहले बदले कांग्रेस के तेवर, कैप्टन की घुड़की के बाद बगावती होंगे पार्टी से बाहर

पंजाब कांग्रेस का बागी नेताओं के प्रति रुख सख्‍त हो गया है। ऐसे में बगावती तेवर दिखाने वाले नेताओं पर जल्‍द ही गाज गिर सकती है। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह द्वारा चेतावनी देने के बाद पार्टी सख्‍ती के मूड में आई है। अमरिंदर ने पार्टी के किसी भी उम्मीदवार के खिलाफ खड़े होने वाले बागी उम्मीदवार को पार्टी से निकालने की चेतावनी दी है।चुनाव से पहले बदले कांग्रेस के तेवर, कैप्टन की घुड़की के बाद बगावती होंगे पार्टी से बाहर

कैप्‍टन ने यह चेतावनी शुक्रवार को पठानकोट में दी। कैप्टन ने इस तरह की चेतावनी उस समय दी, जबकि अभी किसी भी सीट पर कोई उम्मीदवार घोषित नहीं किया गया है। टिकट आवंटन से पहले ही कैप्टन ने बगावती सुर अलापने वालों को कड़ी घुड़की दे दी है। सभी जानते हैं कि गुरदासपुर सीट सुनील जाखड़ को मिलेगी और उनके व कैप्टन अमरिंदर सिंह के प्रताप सिंह बाजवा के साथ संबंध अच्छे नहीं हैं।

टिकट आवंटन से पहले ही कैप्टन ने बगावती सुर अलापने वालों को चेताया

प्रताप सिंह बाजवा इस सीट पर पहले ही अपना हक जता चुके हैं और यहां तक प्रस्ताव दे चुके हैं कि वह अपनी राज्यसभा सीट डॉ. मनमोहन सिंह के लिए छोडऩे को भी तैयार हैं। बाजवा जब पंजाब प्रदेश कांग्रेस के प्रधान थे तब जाखड़ विपक्ष के नेता थे। कैप्टन अमरिंदर सिंह को फिर से प्रधान बनाने को लेकर शुरू हुई मुहिम में जाखड़ ही सबसे आगे थे। हालांकि इससे उनको नुकसान भी हुआ।

पार्टी ने जहां बाजवा से प्रधान पद लेकर कैप्टन को दे दिया, वहीं जाखड़ की कुर्सी भी चली गई। बाजवा को तो राज्यसभा सदस्य बना दिया, लेकिन जाखड़ के हाथ कुछ नहीं लगा। यह बात कैप्टन को भी पता है इसलिए वह किसी कीमत पर जाखड़ को नुकसान पहुंचने नहीं देना चाहते। शायद यही वजह है कि उम्मीदवार घोषित करने से पहले ही कैप्टन ने बागियों के खिलाफ इतना बड़ा और कड़ा बयान दिया है।

दरअसल सुनील जाखड़ गुरदासपुर के लिए बाहरी उम्मीदवार के रूप में प्रचारित किए जा सकते हैं। जिन लोगों का इस सीट को लेकर दावा है वह उन्हें बाहरी उम्मीदवार बताकर जाखड़ को इस सीट से हटवाना चाहते हैं। विनोद खन्ना के निधन के बाद जब इस सीट के लिए उपचुनाव की घोषणा हुई तो उम्मीदवार के तौर पर स्थानीय को टिकट देने की बात सीनियर नेता रमन भल्ला ने उठाई, लेकिन पार्टी ने उनके दावे को खारिज करते हुए अबोहर से विधानसभा चुनाव हार गए सुनील जाखड़ को यहां से उतार दिया।

जाखड़ ने भी निराश नहीं किया। सभी के साथ तालमेल बिठाकर उन्होंने भाजपा के स्वर्ण सलारिया को भारी मतों से पटखनी देकर सीट जीत ली। अब भी उन्हें ही टिकट मिलेगी, यह तय है। पार्टी सूत्र बताते हैं कि छोटे से संसदीय काल में जाखड़ ने हलके में काफी काम करवाए हैं। आज भी सभी पार्टी विधायकों का साथ उन्हें मिला हुआ है। पिछले चुनाव में स्थानीय उम्मीदवार को टिकट देने की मांग करने वाले रमन भल्ला को भी एक बोर्ड का चेयरमैन लगाकर शांत कर लिया गया है।

भल्ला ने की थी सबसे पहले जाखड़ की खिलाफत

सुनील जाखड़ के खिलाफ बगावती सुर अलापने वालों में सबसे ऊपर पठानकोट के पूर्व विधायक रमन भल्ला का नाम है। भल्ला ने करीब एक माह पहले ही बिना जाखड़ का नाम लिए लोकसभा चुनाव में बाहरी की बजाय स्थानीय नेता को उम्मीदवार बनाने की मांग उठाई थी। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश प्रधान प्रताप सिंह बाजवा के करीबी रमन भल्ला ने यहां तक भी कहा था कि जाखड़ को हलके में हो रहा अवैध खनन दिखाई नहीं दे रहा है।

इससे पहले गुरदासपुर के पूर्व सांसद विनोद खन्ना के निधन के बाद जब सुनील जाखड़ का नाम सामने आया था तो प्रताप सिंह बाजवा ने बाहरी उम्मीदवार को टिकट देने का विरोध किया था। बाजवा अपनी पत्नी चरणजीत कौर को टिकट दिलाना चाहते थे। हालांकि इस बार वह खुलकर सामने नहीं आए हैं। इसके अलावा बटाला के विधायक और पूर्व मंत्री अश्विनी सेखड़ी भी टिकट पर दावा जता रहे हैं। जबकि सेखड़ी ने यह भी कहा कि अगर टिकट जाखड़ को भी मिलती है तो वह उनका साथ देंगे।

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