उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मतदान अंतिम दौर में है और प्रदेश में सरकार किसकी बनेगी इसका पता 11 मार्च को चलेगा. लेकिन इससे इतर यूपी के नौकरशाहों में संभावित सत्ता परिवर्तन की वजह से बेचैनी देखने को मिल रही है.
आमतौर पर चुनावों में ऊंट किस करवट बैठेगा इसका पता लगा लेने वाले अफसर भी इस बार दुविधा में हैं. वे भी इस बार मतदाताओं का मूड भांपने में असमर्थ दिख रहे हैं.
यही वजह है कि कई आईएएस और आईपीएस त्रिशंकु विधानसभा का अनुमान लगाते हुए अपनी-अपनी गोटियां राजनैतिक दलों के साथ सेट करने में जुट गए हैं. सूत्रों की मानें तो दिल्ली और लखनऊ में यूपी कैडर के कई अधिकारी बीजेपी और बसपा से संपर्क साधने में जुटे हुए हैं.
इसके अलावा अधिकारी उन पार्कों और स्मारकों को भी साफ और चमकाने में लगे हैं जिनका निर्माण मायावती के शासन काल में हुआ था और मौजूदा सरकार में उनकी अनदेखी की गई.
दरअसल 2012 में अखिलेश सरकार बनने के बाद इन पार्कों और स्मारकों की साफ-सफाई और मरम्मत पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.
इतना ही नहीं इन पार्कों और स्मारकों में से कहीं लखनऊ मेट्रो का दफ्तर बना दिया गया तो कहीं वीमेन पावर लाइन का दफ्तर खोल दिया गया. कहीं फिश पार्लर खुल गए तो कहीं अक्वेरियम और दूध-दही के साथ आइसक्रीम, रसगुल्ला भी बिक रहे हैं.
अब जब चुनाव चल रहा है और वह भी आखिरी दौर में है तो अखिलेश सरकार के ही अफसर अंबेडकर पार्क के हाथियों और मायावती व कांशीराम की मूर्तियां चमकाने में जुट गए हैं. इसके पीछे की वजह साफ नजर आती है. दरअसल अफसरों में यह डर है कि अगर सत्ता में परिवर्तन होता है तो उन्हें नई सरकार का कोपभाजन न बनना पड़े.
बता दें पिछली बार चुनाव आयोग ने इन पार्कों और स्मारकों में लगे हाथियों को नीली पीली बरसाती से ढकवा दिया था क्योंकि यह स्मारक या शोभा के रूप में नहीं बल्कि बसपा के चुनाव निशान के तौर पर देखे गए थे.
लेकिन इस बार जब अभी चुनाव खत्म भी नहीं हुआ है और हाथियों, मायावती और कांशीराम की मूर्तियों की साफ सफाई शुरू करा दी गई है.
इतना ही नहीं यहां पानी के लिए एक करोड़ की प्लम्बरिंग का सामान भी आ चुका है. गेट और प्लंबरिंग का काम स्मारक समिति की ओर से कराया जा रहा है. इन सभी कामों को 11 मार्च से पहले पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है. कुछ अफसर यह काम जल्द से जल्द पूरा करने के लिए दबाव बनाए हुए हैं.
हालांकि संबंधित अधिकारी इस काम पर सफाई देते हैं कि ये रूटीन का कार्य है. बजट जारी करने में देरी हुई थी, जिसकी वजह से काम देरी से शुरू हो सका है. इस काम के लिए एक स्मारक समिति है जिसमें प्रमुख सचिव आवास सदाकांत, उपाध्यक्ष लखनऊ विकास प्राधिकरण सत्येंद्र सिंह और सचिव विकास प्राधिकरण इसके पदेन सदस्य हैं. यह काम समिति की ओर से ही कराया जा रहा है.
सियासी गलियारों में चर्चा हैं कि अफसर बहुत होशियारी दिखाते हैं. हो सकता है कि उन्हें लग रहा हो कि बसपा पावर में आ सकती है. इसलिए पहले से ही आगे की तैयारी में जुट गए हों.