डीओसी का निर्यात लगातार घटने की वजह से सोयाबीन के साथ ही अन्य तिलहन से जुड़ी उद्योगिक मांग कम होने के कारण आगामी फसल की बोवनी घटने की आशंका है।
अप्रैल और मई में सभी तरह की डीओसी (खली) का निर्यात घटने से स्थानीय बाजार में सोयाबीन और सरसों के भाव घटे हैं। डीओसी का निर्यात घटने की मुख्य वजह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी मांग में कमी और चीन की अमेरिका से सोयाबीन खरीदी कम होने के कारण वहां बड़े पैमाने पर स्टॉक बचना है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में भाव कम होने के कारण मई में डीओसी का निर्यात 78 प्रतिशत घटकर महज 58,549 टन रह गया, जबकि पिछले साल मई में 2,63,644 टन डीओसी का निर्यात हुआ था।
वित्त वर्ष 2019-20 के पहले दो महीनों अप्रैल से मई के दौरान डीओसी का निर्यात 36 प्रतिशत घटकर 3,13,134 टन रह गया, जबकि पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में इनका निर्यात 4,87,995 टन का निर्यात हुआ था।
सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (एसईए) के अनुसार अंतरराष्ट्रीय बाजार में सोया डीओसी के साथ ही सरसों डीओसी की कीमतें भी काफी घटी हैं। इसके कारण निर्यात भाव कम होते जा रहे हैं।
अप्रैल के मुकाबले मई में सोया डीओसी के साथ ही सरसों डीओसी, राइसब्रान और केस्टर डीओसी के निर्यात में भी भारी गिरावट आई है। अप्रैल में 40,829 टन सोया डीओसी का निर्यात हुआ था, जो मई में घटकर 18,470 टन रह गया। सरसों डीओसी का निर्यात अप्रैल में 1,20,630 टन रहा था, जो मई में घटकर 19,519 टन का रह गया।
राइब्रान, केस्टर डीओसी निर्यात भी कम
एसईए के मुताबिक मई में राइब्रसान डीओसी का निर्यात घटकर 4,200 टन रह गया, जो अप्रैल में 26,750 टन निर्यात हुआ था। केस्टर खली का निर्यात भी अप्रैल के 66,285 टन से घटकर 16,360 टन रह गया।
भाव में लगातार गिरावट
भारतीय बंदरगाह पर मई में सोया डीओसी के भाव घटकर 447 डॉलर प्रति टन रह गया, जबकि अप्रैल में इसका भाव 460 डॉलर प्रति टन था। इस दौरान सरसों डीओसी का भाव 220 डॉलर प्रति टन से घटकर 218 डॉलर प्रति टन रह गया। हालांकि इस दौरान केंस्टर डीओसी का भाव 77 डॉलर प्रति टन से बढ़कर 101 डॉलर प्रति टन हो गया।
कीमतें घटने के कारण
दुनियाभर में डीओसी की कीमतें घटने की बड़ी वजह अमेरिका के पास जमा स्टॉक और आगामी फसल का दबाव है। अमेरिका में भले ही शुरुआती तौर पर फसल की बोवनी लगातार जारी बरसात के कारण देरी से हो रही हो, लेकिन कुल बोवनी के मुकाबले मांग को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है।
जब तक अमेरिका से चीन को होने वाला सोयाबीन का निर्यात सुगम नहीं होता तब तक दुनियाभर के दूसरे सोयाबीन बाजारों की हालत में सुधार के आसार कम हैं