खरमास को लेकर कुछ खास सावधानियां बरतने से इसके अशुभ फल में कमी आ जाती है। खरमास के दौरान मान्यता है कि मांगलिक कार्य वर्जित रहते हैं, क्योंकि इस समय शुभ कार्य करने से उसके शुभफल में कमी आती है और किए गए कार्य के उद्देश पूरे नहीं होते हैं।
इसलिए खरमास को मलमास भी कहा जाता है। इस मास में सूर्य के तेज में यानी गर्मी में कमी आती है, क्योंकि दो गधों के द्वारा सूर्य के रथ को खींचे जाने की वजह से रथ मंद गति से आदगे बढ़ता है। इस वजह से सूर्य की ऊर्जा में कमी आ जाती है। इस मास को मलीन माना जाता है इसलिए खरमास को मलमास भी कहा जाता है।
पौराणिक ग्रंथों मे कहा गया है कि खरमास में जिस व्यक्ति की मृत्यु होती है, उसको स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती है और वह नरक में स्थान पाता है।
खरमास में देह त्याग से मोक्ष की प्राप्ति नहीं होती है इस बात की पुष्टि महाभारत के इस प्रसंग से होती है। युद्ध के दौरान जब भीष्म घायल होकर शरशैय्या पर लेटे रहते हैं, तो वह कहते हैं में उस वक्त अपने प्राणों का त्याग करूंगा जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करेगा। मकर संक्रांति के दिन पितामह भीष्म अपने ईच्छा-मृत्यु के वरदान का उपयोग कर देह त्याग देते हैं।