संसद द्वारा पारित कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन लगातार 12वें दिन भी जारी है। किसानों की मांग है कि तीनों कानूनों को निरस्त किया जाए। इस आंदोलन को विपक्षी पार्टियों को समर्थन मिल रहा है। ऐसे में शिवसेना ने भी केंद्र सरकार को घेरा है। अपने मुखपत्र सामना में पार्टी ने कहा कि सरकार बातचीत के नाम पर सिर्फ टाइमपास कर रही है और टाइमपास का उपयोग आंदोलन में फूट डालने के लिए किया जा रहा है।
पार्टी ने सामने में लिखा, ‘दिल्ली में आंदोलनकारी किसान और केंद्र सरकार के बीच पांच दौर की चर्चा परिणाम रहित रही है। किसानों को सरकार के साथ चर्चा में बिल्कुल भी दिलचस्पी नजर नहीं आ रही है। सरकार सिर्फ टाइमपास कर रही है और टाइमपास का उपयोग आंदोलन में फूट डालने के लिए किया जा रहा है। किसान आंदोलनकारियों ने स्पष्ट कहा है कि ‘कृषि कानून रद्द करोगे या नहीं? हां या ना, इतना ही कहो!’ सरकार ने इस पर मौन साध रखा है। किसान 11 दिनों से ठंड में बैठे हैं।’
शिवसेना का कहना है कि केवल कृषि मंत्री किसानों से बात कर रहे हैं। सामना में लिखा, ‘सरकार ने किसानों के लिए चाय-पानी, भोजन का इंतजाम किया है। उसे नकारकर किसानों ने अपनी सख्ती को बरकरार रखा है। मूलरूप से किसानों को कह कौन रहा है तो कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर। उनके हाथ में क्या है? तोमर कहते हैं, ‘मोदी सरकार सत्ता में किसानों के हित के लिए ही काम कर रही है। इस सरकार के कारण किसानों का उत्पादन भी बढ़ गया है।’ तोमर ऐसा भी कहते हैं कि, ‘एमएसपी’ जारी ही रहेगी। किसान चिंता न करें।’ परंतु तोमर का बोलना व डोलना निष्फल सिद्ध हो रहा है।’
शिवसेना ने आरोप लगाया कि मोदी और शाह इन दो मोहरों को छोड़ दें तो मंत्रिमंडल के अन्य सभी चेहरे निस्तेज हैं। उनकी व्यर्थ भागदौड़ का महत्व नहीं है। शिवसेना ने कहा, ‘जल्दबाजी में मंजूर कराए गए कृषि कानून को लेकर देश भर में संताप है। पंजाब, हरियाणा के किसानों में इस संताप को लेकर आक्रोश व्यक्त किया इतना ही। कृषि कानून का लाभ किसानों को बिल्कुल भी नहीं है। सरकार कृषि को उद्योगपतियों का निवाला बना रही है।’
शिवसेना ने मोदी सरकार पर कार्पोरेट कल्चर को बढ़ावा देने का आरोप लगाते हुए कहा, ‘हमें कार्पोरेट फॉर्मिंग नहीं करनी है इसीलिए ये कानून वापस लो, ऐसा किसान कहते हैं। मोदी सरकार आने के बाद से ‘कार्पोरेट कल्चर’ बढ़ा है ये सत्य ही है। परंतु हवाई अड्डे, सरकारी उपक्रम दो-चार उद्योगपतियों की जेब में तय करके डाले जा रहे हैं। अब किसानों की जमीन भी उद्योगपतियों के पास जाएगी। अर्थात एक तरह से पूरे देश का ही निजीकरण करके प्रधानमंत्री वगैरह ‘सीईओ’ के तौर पर काम करेंगे। देशी ईस्ट इंडिया कंपनी की यह शुरुआत है।’
मोदी सरकार की ईस्ट इंडिया से तुलना करते हुए सामना में लिखा है, ‘ईस्ट इंडिया कंपनी यूरोप से आई और शासक बन गई। अब स्वतंत्र हिंदुस्तान में सरकार देशी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना करके किसानों, मेहनतकश वर्ग को लाचार बना रही है। उस संभावित गुलामी के खिलाफ उठी यह आग है। परंतु स्वाभिमान और स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले किसानों को खालिस्तानी और आतंकी ठहराकर मारा जा रहा होगा तो देश में असंतोष की आग भड़केगी। इस असंतोष की चिंगारी अब उड़ने लगी है। किसान संगठनों ने 8 दिसंबर को ‘हिंदुस्तान बंद’ का आह्वान किया है। यह बंद जोरदार हो, ऐसी तैयारी चल रही है।’
शिवसेना ने कहा, ‘पेट के लिए सड़क पर उतरे लोगों पर गोली बरसाना अथवा उन्हें पैरों तले रौंदना यह उद्दंडता सिद्ध होगी। अर्थात यह कृति सरकार के अंत की शुरुआत सिद्ध होगी। किसानों को आंदोलन करने का अधिकार है। उसी अधिकार से वे दिल्ली में दृढ़ता के साथ आंदोलन कर रहे हैं। उन्हें जो कृषि कानून जुल्मी लग रहा है उसे वापस लेने में सरकार को भी हिचकिचाने की कोई वजह नहीं है।’