उत्तराखंड की भारतीय जनता पार्टी सरकार में जारी संकट जल्द ही नया रुख ले सकता है. मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत राज्यपाल बेबी रानी मोर्या से मुलाकात करने के लिए राजभवन जा रहे हैं. इस दौरान वह अपना इस्तीफा सौंप सकते हैं.
भाजपा के कई विधायकों द्वारा नाराजगी व्यक्त करने के बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री बने रहने पर संकट जारी था. जिसके बाद केंद्रीय नेतृत्व बीते दो दिनों से मंथन कर रहा था. और तभी से कयास लगाए जा रहे थे कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की सीएम पद से छुट्टी हो सकती है.
अगर उत्तराखंड विधानसभा की बात करें, तो यहां कुल विधायकों की संख्या 70 है. जबकि भाजपा के पास 56 विधायक हैं, वहीं कांग्रेस के पास 11 और 2 विधायक निर्दलीय हैं. जबकि एक सीट अभी खाली हैं. ऐसे में भाजपा को सरकार के मोर्चे पर कोई खतरा नहीं है, लेकिन पार्टी में जारी रार उसके लिए संकट का विषय है.
उत्तराखंड में अगर त्रिवेंद्र सिंह रावत की छुट्टी होती है, तो किसे मुख्यमंत्री बनाया जाएगा इसपर भी चर्चा आम है. इनमें कई नाम सामने आ रहे हैं, जिन्हें ये जिम्मेदारी मिल सकती है. इनमें मंत्री धनसिंह रावत, मंत्री सतपाल महाराज, सांसद अजट भट्ट, सांसद अनिल बलूनी का नाम सुर्खियों में है.
इसके अलावा राज्य में जाति के समीकरण को साधने के लिए मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री के फॉर्मूले को भी अपनाया जा सकता है.
दूसरी तरफ भारतीय जनता पार्टी ने उत्तराखंड के सभी पार्टी विधायकों की बैठक बुलाई है, जिसमें राज्य के नए मुख्यमंत्री के नाम पर मुहर लगाई जा सकती है. बुधवार सुबह 11 बजे देहरादून में भाजपा विधायक दल की बैठक होगी. पार्टी की ओर से रमन सिंह और दुष्यंत गौतम को बतौर पर्यवेक्षक देहरादून भेजा जाएगा.
आपको बता दें कि उत्तराखंड में पार्टी के कई विधायकों और मंत्रियों ने त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. उसी के बाद से ही उत्तराखंड की सरकार पर संकट के बादल छाए हुए हैं.
पहले भारतीय जनता पार्टी द्वारा दिल्ली से पर्यवेक्षकों को भेजा गया, उसके बाद बीते दिन त्रिवेंद्र सिंह रावत दिल्ली में आए. दिल्ली में उत्तराखंड सीएम ने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, पार्टी सांसद अनिल बलूनी समेत कई नेताओं से मुलाकात की.
भारतीय जनता पार्टी को उत्तराखंड से मिली रिपोर्ट के मुताबिक, अगर पार्टी त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों में जाती है तो बड़ा नुकसान हो सकता है.
यही कारण है कि पार्टी मंथन करने के बाद कोई बड़ा फैसला लेने के मुकाम पर पहुंची है. त्रिवेंद्र सिंह रावत से खफा विधायकों की शिकायत रही है कि उनकी अगुवाई में सरकार और संगठन के बीच कनेक्शन टूट-सा गया है.