नवरात्र के सातवें दिन या सप्तमी मां काली की पूजा होती है। ऐसा कहा जाता है बेहद क्रोध में दिखने वाली देवी कालरात्रि का मन बहुत ही निर्मल है। इसलिए जो लोग मां की विधिपूर्वक पूजा करते हैं और उनके लिए कठिन व्रत (Shardiya Navratri 2024 Day 7) रखते हैं देवी उनकी सदैव रक्षा करती हैं। वहीं इस दिन का सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ बहुत शुभ माना गया है।
शारदीय नवरात्र सबसे शुभ हिंदू त्योहारों में से एक है, जो मां दुर्गा को समर्पित है। इस साल यह नौ दिवसीय व्रत 3 अक्टूबर को शुरू हुआ। इस पर्व के प्रत्येक दिन मां दुर्गा और उनके नौ दिव्य अवतारों की पूजा का विधान है। नवरात्र के सातवें दिन या सप्तमी को भक्तों द्वारा मां कालरात्रि की पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है बेहद उग्र दिखने वाली मां काली का मन बहुत ही निर्मल गंगाजल के समान है। इसलिए कहा जाता है कि जो साधक मां की विधिपूर्वक पूजा करते हैं और उनके लिए कठिन व्रत (Shardiya Navratri 2024 Day 7) रखते हैं देवी उनकी सदैव रक्षा करती हैं।
इसके अलावा इस दिन ”सिद्ध कुंजिका स्तोत्र” (Siddh Kunjika Stotram) का पाठ भी बहुत उत्तम माना गया है, जिसके प्रभाव से जीवन में बरकत आती है और सभी प्रकार के भयों से सुरक्षा मिलती है, तो आइए यहां करते हैं।
।।सिद्ध कुंजिका स्तोत्र।। (Siddh Kunjika Stotram)
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि, कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।
येन मन्त्रप्रभावेण चण्डीजापः शुभो भवेत॥१॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम्॥२॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम्॥३॥
गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति।
मारणं मोहनं वश्यं स्तम्भनोच्चाटनादिकम्।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्॥४॥
॥अथ मन्त्रः॥
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा॥
॥इति मन्त्रः॥
नमस्ते रूद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि॥१॥
नमस्ते शुम्भहन्त्र्यै च निशुम्भासुरघातिनि॥२॥
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरूष्व मे।
ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका॥३॥
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते।
चामुण्डा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनी॥४॥
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मन्त्ररूपिणि॥५॥
धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु॥६॥
हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जम्भनादिनी।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः॥७॥
अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा॥
पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा॥८॥
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मन्त्रसिद्धिं कुरुष्व मे॥
इदं तु कुञ्जिकास्तोत्रं मन्त्रजागर्तिहेतवे।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति॥
यस्तु कुञ्जिकाया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत्।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा॥
इति श्रीरुद्रयामले गौरीतन्त्रे शिवपार्वतीसंवादे कुञ्जिकास्तोत्रं सम्पूर्णम्।
॥ॐ तत्सत्॥