New Delhi: भारत में जब सब कुछ बदल रहा है तो अब सेना भी बदलेगी। सरकार ने सेना की कार्य प्रणाली में सुधारों तथा खर्च में संतुलन बनाने के उद्देश्य से आजादी के बाद का सबसे बड़ा कदम उठाते हुए गैर जरूरी विभागों को बंद करने तथा कुछ को आपस में मिलाने का निर्णय लिया है।
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सेना की लड़ाकू क्षमता बढ़ाने के लिए लगभग 60 हजार अधिकारियों और जवानों को जरूरत के हिसाब से लड़ाकू भूमिका में तैनात किया जाएगा। पीएम मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट बैठक में सेना की कार्य प्रणाली में सुधारों तथा खर्च में संतुलन के बारे में सुझाव देने वाली समिति की 65 सिफारिषों को मंजूरी दे दी गई।
रक्षा मंत्री अरुण जेटली ने बताया कि सेवानिवृत लेफ्टिनेंट जनरल डीबी शेतकर की अध्यक्षता में इस साल मई में एक समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने ही सेना का स्ट्रक्चर बदलाव कर राजस्व खर्च कम करने का सुझाव दिया था। समिति ने गत दिसंबर में अपनी रिपोर्ट में 99 सिफारिशें की थीं। जिसमें से 65 सिफारिशों को रक्षा मंत्रालय ने स्वीकार कर लिया है।
एजुकेशन कोर का पूर्ण पुनर्गठन नहीं होगा। इसके तहत चलने वाले विदेशी भाषाओं के कोर्स चलते रहेंगे। शांति स्थलों पर तैनात किए गए सैन्य सहायक इस पुनर्गठन का हिस्सा नहीं बनेंगे। उदाहरण के लिए सिग्नल्स यूनिट ब्रिटिश काल में स्थापित की गई थी।
लेकिन आज इसकी रेडियो मॉनिटरिंग कंपनियों की प्रासांगिक्ता समाप्त हो चुकी है। क्योंकि संचार के लिए कंप्यूटर, इंटरनेट समेत कई आधुनिक उपकरण आ चुके हैं। मोबाइल फोन के जमाने में आर्मी पोस्टल ऑफिस का इस्तेमाल भी खत्म हो गया है।
बता दें कि 20 फीसदी से कम बजट में ही नए हथियार खरीदने में खर्च होता है। बजट में से एक बड़ा हिस्सा हर साल केवल सेना के मेंटेनेंस पर इस्तेमाल हो जाता है। यदि सेना की रिस्ट्रक्चरिंग कारगर साबित होती है तो इससे बचने वाले फंड्स का इस्तेमाल ट्रेनिंग और हछियाक खरीदने में किया जा सकता है।
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