आंखों की खूबसूरती और यौवन के सौंदर्य में चार चांद लगाने वाले काजल का इतिहास,जानकर जायेंगे चौंक

”बिंदिया, चूड़ी, गजरा, कंगन एक तरफ़, सब पर भारी काजल धारी आंखों में” जीम जाज़िल का यह शेर बताता है कि किसी भी युवती के सौंदर्य को निखारने के लिए किसी अन्य साज-सज्जा की चीजों से कई ज्यादा अहमियत जो चीज रखती है वह है काजल. वही काजल जो कभी बच्चो को लगाकर माएं यह सुनिश्चित करती हैं कि उन्हें नजर न लगें तो कभी घर की बेटी-बहू अपने रूप को निखारने के लिए लगाती. लेकिन क्या आप काजल के इतिहास के बारे में जानते हैं. किस देश में पहली बार काजल का इस्तेमाल हुआ और भारत में यह किस तरह प्रचलित है. अगर ये सब आप नहीं जानते  तो आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि आखिर काजल आया कहां से.

कई अलग-अलग नामों से जाना जाता है काजल

इसके कई नाम हैं, जैसे इसे सुरमा, कोहल और कोल कहा जाता है. भारत में काजल काफी प्रचलित है. किसी भी दुल्हन का सोलह सिंगार बिना काजल के पूरा नहीं माना जाता है. भारत में भी इसे अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग नामों से पुकारते हैं. पंजाबी और उर्दू में इसे ‘सुरमा’ कहा जाता है. जबकि ‘कणमाशी’ मलयाली में कहा जाता है. कन्नड़ में कादीज, तेलुगु में कातुका है, और तमिल में इसे कान माई कहते हैं.

कहां से आया काजल, जानिए इतिहास

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पुराने जमाने में दीपक के उपर एक डिब्बी रख कर परंपरागत तरीके से काजल बनाया जाता था. सबसे पहले काजल का उपयोग मिस्र में हुआ था. इतिहासकारों की माने तो काजल का अविष्कार और इस्तेमाल मिस्र में 3100 BC में शुरू हुआ. शुरुआती दौर में इसका उपयोग आंखों की बीमारी के इलाज के लिए किया जाता था. धीरे-धीरे इसके इस्तेमाल से पता चला कि इसको रोज इस्तेमल करने से यह कई तरह की आंखों की समस्या ठीक कर सकती है. ऐसा भी माना जाता है कि काजल लगाने से सूरज की तेज रोशनी का आंखों पर कोई असर नहीं पड़ता.

मिस्र के अलावा शुरुआती दिनों में अफ्रीकी देशों की आदिवासी जनजातियों में भी काजल का इस्तेमाल देखा गया है. वे न केवल आंखों में बल्कि माथे, नाक और शरीर के अन्य अंगों में भी काजल का प्रयोग करते आए हैं. मिस्र, अफ्रीका के अलावा दक्षिण एशिया में काजल काफी प्रचलित है. मिस्त्र और अफ्रीका के बाद दक्षिण एशिया में काजल का उपयोग बाहुलता से किया गया.

भारत में काजल

काजल भारत में काफी प्रचलित है.

भारत में बचपन से लेकर शादी की उम्र तक और उसके बाद बी काजल का काफी बड़ा महत्व है. इसका इस्तेमाल कला के महत्व से भी जुड़ी है. भरतनाट्यम और कथकली नर्तकियों के अलावा ठुमरी-दादरा करने वाले कलाकारों की आंखें भी काजल से रंगी हुई होती हैं. भारतीय रंगमंच पर पारंपरिक नृत्य करने वाले कलाकारों का काजल लगाना लगभग अनिवार्य है.

दिवाली से जुड़ा है काजल का महत्व

7 नवंबर को दिवाली है और इस दिन से भारत में काजल का खास महत्व है. इस दिन भारतीय परिवारों में काजल बनाने की प्रथा है. इस दिन भगवान गणेश और लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है. उनके लिए जो दीपक जलाया जाता है और इसी दीपक की लौ के जरिए काजल बनता है और फिर वह परिवार के सभी सदस्यों की आंखों में लगाया जाता है.

लोग कपूर और बदाम के जरिए घर में काजल बनाते हैं. बाजार में भी कई अलग-अलग जैसे नीली और सफेद रंगे के काजल भी मौजूद है. काजल के बिना मेकअप अधूरा है. आंखों को हाइलाइट करने और आकर्षक लुक देने के लिए आजकल सभी लड़कियां काजल का इस्तेमाल करती हैं. यूं तो बाज़ार में बहुत सारे ब्रांड्स के काजल मौजूद है, लेकिन उनमें कोई न कोई केमिकल ज़रूर मिला होता है इसलिए आज आप घर पर भी काजल बना सकते हैं.

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