सोशल साइट फेसबुक की प्रस्तावित डिजिटल मुद्रा लिब्रा अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप (US President Donald Trump) और वैश्विक नियामकों के निशाने पर आ गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने आभासी मुद्राओं पर हमला करते हुए कथित अस्पष्ट प्रकृति के लिए उनकी आलोचना की। उन्होंने कहा कि लिब्रा का ना तो कोई आधार है और ना ही इसकी कोई विश्वसनीयता ही है। इसके साथ ही व्यापक क्रिप्टोकरेंसी समुदाय ने भी इस पर शंका जताई है।
दरअसल, लंदन के वित्तीय प्रौद्योगिकी या फिनटेक उद्योग के प्रभावशाली लोग आभासी मुद्राओं (cryptocurrency community) के भविष्य पर बातचीत करने के लिए जमा हुए थे। लंदन में हुए ‘फिनटेक वीक’ के एक कार्यक्रम में पूछा गया कि जो लोग लिब्रा का इस्तेमाल नहीं करना चाहते हैं वे अपने हाथ उठाएं। इसके बाद करीब 100 विशेषज्ञों और मीडियाकर्मियों से भरे कमरे में दो तिहाई लोगों ने अपना हाथ उठाकर इस पर संदेह जताया। जानकारों का मानना है कि लिब्रा दूसरी आभासी मुद्रा बिटकॉइन को चुनौती देने वाला है। इसके 2020 की पहली छमाही में शुरू किए जाने की संभावना है।
इस करेंसी का सबसे बड़ा मसला भुगतान शुल्क है, जिसे विश्व बैंक को तय करना है। परदेस से आने वाली रकम की विनियम का औसत शुल्क वर्तमान में सात फीसद है। कुछ देशों में रकम भेजने के लिए लोगों को 10 फीसद तक शुल्क चुकाना पड़ रहा है। हालांकि, फेसबुक का दावा है कि इससे लेनदेन का शुल्क न बराबर होगा। अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने भी फेसबुक की प्रस्तावित डिजिटल करेंसी ‘लिब्रा’ को लेकर गंभीर चिंता जताई है। उनका कहना है कि जब तक मनी लांड्रिंग और अन्य मुद्दों से निपटने को लेकर कंपनी के तरीकों पर व्यापक सहमति नहीं बन जाती, तब तक यह योजना आगे नहीं बढ़ सकती।