अफगानिस्तान में पिछले कई वर्षों से चल रहा युद्ध खत्म होने की कगार पर है। शनिवार को अमेरिका और तालिबान के बीच एक समझौते पर हस्ताक्षर करने की तैयारी की जा चुकी है। इसी के साथ काबुल से अमेरिकी सेना की सुरक्षित वापसी का रास्ता खुल जाएगा।
काबुल और विद्रोहियों में इस वार्ता को अफगानिस्तान में पिछले 40 साल से जारी संघर्ष के बाद एक नए युग की शुरुआत के रूप में देखा जा रहा है।
हालांकि तालिबान के इरादों और अफगानिस्तान सरकार के बीच अभी भी कई सवाल मौजूद हैं और देश के राजनीतिक संकट में घिरने का खतरा जताया जा रहा है। लेकिन अमेरिका और तालिबान के बीच एक साल लंबी वार्ता के बाद हिंसा खत्म करने के समझौते पर दस्तखत होने से कई उम्मीदें भी पैदा हुई हैं।
दोहा में इस समझौते का विवरण अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है लेकिन संभावना है कि अफगानिस्तान से अमेरिका अपने सैनिकों की वापसी शुरू कर देगा। यहां फिलहाल अमेरिका के 12,000 से 13,000 सैनिक मौजूद हैं।
अमेरिका ने कहा है कि प्रारंभिक रूप से वह यहां से 8,600 सैनिकों को वापस बुलाएगा। इसे डोनाल्ड ट्रंप अमेरिकी चुनाव में अपने पुराने वादे को पूरा करने के तौर पर भुनाने की पूरी कोशिश करेंगे। हस्ताक्षर समारोह में दो दर्जन से ज्यादा देशों के प्रतिनिधि शामिल रहेंगे।
विद्रोहियों की यह भी गारंटी है कि अफगानिस्तान को फिर से जिहादी समूहों (अल-कायदा और आईएस) द्वारा विदेशी हमलों की साजिश के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।
हालांकि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के कुछ करीबी सलाहकारों को इस पर अभी गहरा संदेह है। लेकिन शनिवार को शांति पर होने वाले दस्तखत में तालिबान के साथ भरोसा पैदा करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
शनिवार को दोहा में होने वाले शांति समझौते पर दस्तखत के बीच पाकिस्तानी पीएम इमरान खान बृहस्पतिवार को कतर की एक दिनी यात्रा पर पहुंचे। हालांकि वे 29 फरवरी को अमेरिका व तालिबान के बीच होने वाले शांति समझौते में वहां मौजूद नहीं रहेंगे। लेकिन वे कतर दौरे पर अमीर शेख तमीम बिन हमाद अल-थानी से मुलाकात करेंगे।