अदभुत वॉयलिन का एक तार टूट जाने पर भी नहीं रुके हाथ, श्रोता सुनते ही गए वो सुनाता ही गया

18 नवंबर 1995 को न्यूयॉर्क के लिंकन सेंटर के एवरी फिशर हॉल में वायलिन वादक इत्जाक पर्लमान स्टेज पर वायलिन बजाने आए। स्टेज तक चलकर पहुंचना उनके लिए आसान नहीं था। बचपन में पोलियो हो जाने के कारण उनके दोनों पैर बेकार हो गए थे। वे दोनों पैरों में बंधे लोहे के ब्रेस और बैसाखियों के सहारे चलते थे। उन्होंने दर्दभरे कदम उठाए लेकिन शान से और बहुत आहिस्ता से कुर्सी पर बैठ गए। अपने पैरों में बंधे कब्जे खोले। एक पैर को हाथों से उठाकर कुर्सी के नीचे अटकाया और दूसरे पैर को सामने फैला दिया। वायलिन उठाकर उसे ठोड़ी के नीचे दबाने के बाद सिर हिलाकर कंडक्टर को इशारा किया और वायलिन बजाने लगे। उसके नियमित श्रोता इस क्रियाकलाप के आदी थे।

वादन शुरू होने के कुछ पलों के भीतर ही एक गड़बड़ हो गई। पर्लमान ने मुखड़ा बजाना खत्म ही किया था कि उनके वायलिन का एक तार टूट गया। वायलिन में चार तार होते हैं और चारों से ही वायलिन बजता है। तार टूटने पर गोली चलने जैसी आवाज आई। ऐसा होने पर हम जानते हैं कि कलाकार की प्रतिक्रिया क्या होगी। शायद वह अपने कब्जे वापस बांधे और दूसरा वायलिन लेने के लिए स्टेज से उतर जाए या वह वहीं किसी से नया तार या दूसरा वायलिन मंगवा ले लेकिन ऐसा नहीं हुआ। कुछ पल शांत बैठने के बाद पर्लमान ने कंडक्टर को शुरू करने का इशारा किया। वादन वहीं से शुरू हुआ जहां से उन्होंने छोड़ा था। उस दिन उन्होंने ऐसी ऊर्जा, शुद्धता और शुचिता से वायलिन बजाया जैसा श्रोताओं ने पहले कभी नहीं सुना था। हालांकि किसी सिंफनी में तीन तारों वाला वायलिन बजाना नामुमकिन है। मैं (निशांत) इस बात को जानता हूं क्योंकि बहुत साल पहले मैं वायलिन बजाता था।

आप वहां होते तो उनके मन-मस्तिष्क में प्रतिपल जन्म ले रहीं स्वर लहरियों को उमड़ते देख सकते थे। कार्यक्रम की समाप्ति पर सभागार में अपूर्व मौन बिखरा हुआ था। फिर सभी उपस्थित खड़े होकर ताली बजाने लगे। लोग चीख रहे थे, आंसू पोंछ रहे थे, पर्लमान उठे, उन्होंने माथे से पसीना पोंछा, वायलिन की बो (कमानी) को उठाकर लोगों को शांत होने के लिए इशारा किया और विचारपूर्ण स्वर में कहा, ‘आप जानते हैं, कभी-कभी कलाकार का काम यह खोजना हो जाता है कि जो संगीत उसने पहले कभी नहीं बजाया है उसमें से वह क्या कुछ निकाल सकता है।’

कितनी सशक्त अभिव्यक्ति! यह कलाकारों के लिए नहीं बल्कि सभी के लिए जीवन की परिभाषा भी है। जिंदगीभर पर्लमान ने चार तारों वाले वायलिन पर ही संगीत उत्पन्न किया लेकिन जब एक भरे सभागार में वादन के दौरान तीन ही तार बचे, तब उन्होंने तीन तारों से ही वादन किया। वह संगीत सुंदर, पवित्र, और अधिक स्मरणीय था। तो इस आपाधापी और उलझन भरी दुनिया में हमारे सामने बस एक ही उपाय है कि हमारे पास जितना है उसी से दिव्य संगीत की रचना करें। जब कुछ न बचे तो उस संगीत को तलाशें जो कहीं बचा रह गया है।

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