दुनिया में फैले कोरोना वायरस संक्रमण के बीच अमेरिका ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) से रिश्ते तोड़ने की प्रक्रिया शुरू कर दी है.
WHO संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य से जुड़ी सबसे बड़ी संस्था है. हाल ही में कोरोना वायरस संक्रमण की जड़ को लेकर अमेरिका और WHO के बीच तीखा विवाद रहा है.
अमेरिका कोरोना वायरस संक्रमण के लिए चीन को जिम्मेदार मानता है, जबकि WHO का कहना है कि इस मामले में चीन ने जिम्मेदारीपूर्वक अपना रोल निभाया है.
WHO से अलग होने के लिए अमेरिका ने संयुक्त राष्ट्र के महासचिव को दस्तावेज सौंप दिए हैं. WHO से अलग होने के लिए नियमों के मुताबिक 1 साल पहले सूचना देनी जरूरी है. इस तरह से अमेरिका 6 जुलाई 2021 से पहले WHO से अलग नहीं हो सकता है. इसका ये भी मतलब है कि इस एक साल के दरम्यान इस फैसले को बदला भी जा सकता है.
सीनेटर बॉब मेनेन्देज ने कहा है कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से अलग होने की सूचना यूएस कांग्रेस को दे दी है.
बता दें कि मई महीने में जब अमेरिका में कोरोना वायरस का प्रकोप चरम पर था इस दौरान ही राष्ट्रपति ट्रंप ने घोषणा की थी कि उनका देश विश्व स्वास्थ्य संगठन से रिश्ते खत्म करने जा रहा है.
इससे पहले ट्रंप ने अप्रैल में ही WHO की फंडिग पर रोक लगा दी थी. इसके बाद उन्होंने WHO को पत्र लिखकर इसमें संगठनात्मक सुधार की मांग की थी.
बता दें कि अमेरिका WHO को सबसे ज्यादा फंड देने वाला देश है, एक रिपोर्ट के मुताबिक WHO लगभग 400 मिलियन डॉलर हर साल विश्व स्वास्थ्य संगठन को देता है.
ट्रंप और उनके सहयोगी WHO की ये कहकर आलोचना कर रहे हैं कि दुनिया का सबसे बड़ा संगठन होने के बावजूद WHO कोरोना के शुरुआती लक्षण पहचानने में नाकाम रहा, इसकी वजह से ये बीमारी पूरी दुनिया में फैली.
बता दें कि अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा कोरोना प्रभावित देश है. यहां लगभग 30 लाख लोग कोरोना वायरस से संक्रमित हैं.