नैनीताल हाईकोर्ट ने उत्तराखंड के यूसीसी में लिव-इन संबंधों के अनिवार्य पंजीकरण को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई की। सुनवाई के दौरान टिप्पणी करते हुए कहा कि बिना शादी किए निर्लज्जता के साथ रह रहे हैं तो फिर निजता का हनन कैसे। कहा कि राज्य सरकार ने भी यह नहीं कहा है कि आप साथ नहीं रहते हैं।
याचिका दायर करने वाले देहरादून के जय त्रिपाठी के अधिवक्ता ने तर्क दिया था कि ऐसे संबंधों के पंजीकरण के लिए अनिवार्य प्रावधान कर राज्य सरकार गपशप को संस्थागत रूप दे रही है। याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट के वर्ष 2017 के फैसले का हवाला दे तर्क दिया कि लिव इन अनिवार्य पंजीकरण से निजता का हनन हो रहा है।
मुख्य न्यायाधीश जी नरेंदर व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ ने सोमवार को सुनवाई के दौरान कहा कि यूसीसी ऐसे रिश्ते के लिए पंजीकरण करने के लिए कह रही है। ‘क्या रहस्य है? आप दोनों एक साथ रह रहे हैं, आपका पड़ोसी जानता है, समाज जानता है और दुनिया जानती है। फिर आप जिस गोपनीयता की बात कर रहे हैं, वह कहां है? बिना शादी के दो लोग निर्लज्जता के साथ रह रहे हैं तो फिर निजता का हनन कैसे, कहां हुआ।
याचिकाकर्ता ने कहा कि अल्मोड़ा के एक युवक की हत्या अंतर-धार्मिक लिव-इन रिलेशनशिप की वजह से कर दी गई। खंडपीठ ने इस याचिका को अन्य याचिकाओं के साथ संबद्ध करते हुए अगली सुनवाई के लिए पहली अप्रैल की तिथि नियत कर दी है।
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