क्या घड़ी थी एक भी चिंता नहीं थी पास आई, कालिमा तो दूर छाया भी पलक पर थी न छाई, आंख से मस्ती झपकती, बात से मस्ती टपकती थी हंसी ऐसी जिसे सुन बादलों ने शर्म खाई, वह गई तो …
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