शरद पूर्णिमा रविवार 13 अक्टूबर को है। इस दिन चंद्रमा की सोलह कलाओं की शीतलता देखने लायक होती है। यह पूर्णिमा सभी बारह पूर्णिमाओं में सर्वश्रेष्ठ मानी गयी गई है।
पौराणिक महत्व
इसी दिन भगवान कृष्ण महारास रचाना आरम्भ करते हैं। देवीभागवत महापुराण में कहा गया है कि, गोपिकाओं के अनुराग को देखते हुए भगवान कृष्ण ने चन्द्र से महारास का संकेत दिया, चन्द्र ने भगवान कृष्ण का संकेत समझते ही अपनी शीतल रश्मियों से प्रकृति को आच्छादित कर दिया। उन्ही किरणों ने भगवान कृष्ण के चहरे पर सुंदर रोली कि तरह लालिमा भर दी। फिर उनके अनन्य जन्मों के प्यासे बड़े बड़े योगी, मुनि, महर्षि और अन्य भक्त गोपिकाओं के रूप में कृष्ण लीला रूपी महारास ने समाहित हो गए, कृष्ण कि वंशी कि धुन सुनकर अपने अपने कर्मो में लीन सभी गोपियां अपना घर-बार छोड़कर भागती हुईं वहां आ पहुचीं। कृष्ण और गोपिकाओं का अद्भुत प्रेम देख कर चन्द्र ने अपनी सोममय किरणों से अमृत वर्षा आरम्भ कर दी जिसमे भीगकर यही गोपिकाएं अमरता को प्राप्त हुईं और भगवान कृष्ण के अमर प्रेम का भागीदार बनीं।
चांद की किरणें इस दिन अमृत बरसाती हैं
चंद्रमा कि सोममय रश्मियां जब पेड़ पौधों और वनस्पतियों पर पड़ीं तो उनमे भी अमृत्व का संचार हो गया। इसीलिए इस दिन खीर बना कर खुले आसमान के नीचे मध्य रात्रि में रखने का विधान है। रात में चन्द्र कि किरणों से जो अमृत वर्षा होती है, उसके फल स्वरुप वह खीर भी अमृत सामान हो जाती है। उसमें चंद्रमा से जनित दोष शांति और आरोग्य प्रदान करने क्षमता स्वतः आ जाती है। यह प्रसाद ग्रहण करने से प्राणी मानसिक कष्टों से मुक्ति पा लेता है।
कर्ज से मुक्ति पाने का दिन- शरद पूर्णिमा
प्रलय के चार प्रमुख देवता रूद्र, वरुण, यम और निर्रृति का तांडव जब आषाढ़ शुक्ल एकादशी विष्णु शयन के दिन से आरम्भ होता है, तो माता लक्ष्मी भी विष्णु सेवा में चली जाती हैं। जिसके परिणाम स्वरुप देवप्राण कि शक्तियां भी कमजोर होती जाती है और आसुरी शक्तियों का वर्चस्व बढ़ जाता है। इस अवधि में वरुणदेव बाढ़ , सुखा, भूस्खलन रूद्र नानाप्रक्रार के ज्वर आदि रोग, यम अकाल मृत्यु और अलक्ष्मी देवी पृथ्वीवासियों को नाना प्रक्रार के कष्ट, गरीबी और हानि पहुचाती हैं। इस काल की मुख्य अवधि भादों पूर्णिमा तक होती है।
महालय के बाद नवरात्रि में शक्ति आराधना के मध्य जब देवप्राण कि शक्ति बढ़ने लगती है, तब आसुरी शक्तियां कमजोर पड़ने लगती हैं। विजयदशमी के दिन व्रत पारण के पश्चात् भगवान् विष्णु की परम प्रिय एकादशी को सबके पूजा आराधना का फल कर्मों के आधार पर दिया जाता है। जिससे पाप कर्मो पर अंकुश लगजाता है, इसीलिए इसे पापांकुशा एकादशी भी कहते हैं। पाप पर अंकुश लगने के बाद पूर्णिमा को माता महालक्ष्मी का पृथ्वी पर आगमन होता है।
वे घर-घर जाकर सबको वरदान देती हैं, किन्तु जो लोग दरवाजा बंद करके सो रहे होते हैं, वहां से लक्ष्मी जी दरवाजे से ही वापस चली जाती है। तभी शास्त्रों में इस पूर्णिमा को जागर व्रत, यानी कौन जाग रहा है व्रत भी कहते हैं। इस दिन की लक्ष्मी पूजा सभी कर्जों से मुक्ति दिलाती हैं। अतः शरद पूर्णिमा को कर्ज मुक्ति पूर्णिमा भी कहते हैं। इस रात्रि को श्रीसूक्त का पाठ, कनकधारा स्तोत्र, विष्णु सहस्त्रनाम का जाप और भगवान कृष्ण का मधुराष्टकम का पाठ ईष्ट कार्यों की सिद्धि दिलाता है और उस भक्त को भगवान कृष्ण का सानिध्य मिलता है।
ज्योतिषीय महत्व और उपाय
जन्म कुंडली में चंद्रमा क्षीण हों, महादशा-अंतर्दशा या प्रत्यंतर्दशा चल रही हो या चंद्रमा छठवें, आठवें या बारहवें भाव में हो तो चन्द्र कि पूजा और मोती अथवा स्फटिक माला से ॐ सों सोमाय मंत्र का जप करके चंद्रजनित दोष से मुक्ति पाई जा सकती है। जिन्हें लो ब्ल्ड प्रेशर हो, पेट या ह्रदय सम्बंधित बीमारी हो, कफ़ नजला-जुखाम हो आखों से सम्बंधित बीमारी हो वै आज के दिन चन्द्रमा की आराधान करके इस सबसे मुक्ति पा सकते हैं। जिन विद्यार्थियों का मन पढ़ाई में न लगता हो वे चन्द्र यन्त्र धारण करके परीक्षा अथवा प्रतियोगिता में अच्छे अंक प्राप्त कर सकते हैं।
शरद पूर्णिमा पर छत पर खीर रखने की वैज्ञानिक मान्यता
शरद पूर्णिमा की रात को छत पर खीर को रखने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य भी है। खीर दूध और चावल से बनकर तैयार होता है। दरअसल दूध में लैक्टिक नाम का एक अम्ल होता है। यह एक ऐसा तत्व होता है जो चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। वहीं चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया आसान हो जाती है। इसी के चलते सदियों से ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है और इस खीर का सेवन सेहत के लिए महत्वपूर्ण बताया है। एक अन्य वैज्ञानिक मान्यता के अनुसार इस दिन दूध से बने उत्पाद का चांदी के पात्र में सेवन करना चाहिए। चांदी में प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। इससे विषाणु दूर रहते हैं।