नई दिल्ली। कोरोना वायरस महामारी के साथ-साथ अब ठंड का मौसम और प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों का प्रकोप बढ़ रहा है। विशेषज्ञों का कहना है कि इन सब कारणों से निमोनिया से ग्रस्त होने का ख़तरा भी तेज़ी से बढ़ा है।
सर्दी के मौसम में वैसे भी बच्चों से लेकर वृद्ध तक किसी को भी निमोनिया हो जाता है, लेकिन कोविड-19 महामारी के प्रकोप के कारण निमोनिया का ख़तरा ज़्यादा बढ़ गया है। लोगों को निमोनिया के बारे में जागरूक करने के उद्देश्य से 12 नवंबर को विश्व निमोनिया दिवस मनाया जाता है। सबसे पहले इस दिन को मनाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र द्वारा 12 नवंबर 2009 को हुई जिसका उद्देश्य विश्वभर में लोगों के बीच निमोनिया के प्रति जागरूकता फैलाना था।
लैंसेट गैस्ट्रोएंटरोलॉजी और हेपाटोलॉजी जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, शोधकर्ताओं ने कुछ समय पहले एक रिसर्च में पाया कि कोरोना वायरस के ज़्यादातर मरीज़ जो डायरिया से भी ग्रस्त थे, उनमें निमोनिया के गंभीर लक्षण पाए गए, जबकि जिन मरीज़ों को डायरिया की शिकायत नहीं थी उनमें निमोनिया का स्तर गंभीर नहीं पाया गया।
कोरोना वायरस का आम लक्षण-
इन मरीज़ों में कोरोना वायरस का सबसे आम और पहला लक्षण बुख़ार, खांसी और बलग़म आना था। इनमें से 49 मरीज़ों में डायरिया देखा गया। रिसर्च के मुताबिक, जिन मरीज़ों को डायरिया था उनकी उम्र भी ज़्यादा थी।
डायरिया और निमोनिया-
शोधकर्ताओं ने यह भी पाया कि जिन रोगियों को डियारिया नहीं था उनकी तुलना में डायरिया वाले रोगियों में निमोनिया के गंभीर लक्षण दिखाई दिए। इसके अलावा डायरिया से पीड़ित कोरोना वायरस के मरीज़ों को वेंटीलेटर की भी ज़रूरत पड़ी, जबकि डायरिया और ऑक्सीजन की कमी में कोई रिश्ता नहीं है।
निमोनिया के शुरुआती लक्षण क्या हैं?
निमोनिया वायरस, बैक्टीरिया, परजीवी के कारण होने वाला रोग है। ये सब श्वास के द्वारा फेफड़ों में पहुंचकर संक्रमण कर देते हैं। स्ट्रेप्टोकोकस नामक बैक्टीरिया के कारण यह सबसे अधिक फैलता है। सर्दी-जुकाम जल्दी ठीक नहीं होने पर यह धीरे-धीरे निमोनिया में बदल जाता है। इस रोग में फेफड़ों में कफ अथवा तरल पदार्थ जमा हो जाता है, जिस कारण सांस लेने में कठिनाई होती है।
निमोनिया के सामान्य संकेत और लक्षण बलगम या खून के साथ खांसी, शरीर के तापमान का 101 डिग्री या इससे अधिक ऊपर होना, अत्यधिक पसीना और ठंड लगना, सांस लेने में कठिनाई, मतली और उल्टी, छाती क्षेत्र में दर्द, घरघराहट, खाने या पीने में दिक्कत, ऊर्जा की कमी।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स-
डॉ. पीयूष गोयल (कंसल्टेंट- पल्मोनोलॉजी एंड क्रिटिकल केयर, कोलंबिया एशिया हॉस्पिटल, पालम विहार गुरुग्राम) का कहना है कि निमोनिया एक संक्रामक बीमारी है, जो या तो बैक्टीरिया, वायरस या फंगी से होता है। दुनिया में इस बीमारी की वजह से 5 साल के कम उम्र के बच्चे ज्यादा मौत का शिकार होते हैं। भारत में भी बच्चों में निमोनिया होना अन्य देशों के मुक़ाबले ज्यादा आम है। हाल की परिस्थिति में निमोनिया होने से गंभीर परिणाम देखने को मिल सकते हैं क्योंकि इस समय महामारी का भी कहर जारी है। निमोनिया होने से मरीज़ को कोविड-19 से संक्रमित होने का ख़तरा बढ़ जाता है। वहीं, कोविड-19 से पीड़ित किसी व्यक्ति की हालत गंभीर होने पर उसे निमोनिया हो सकता है। निमोनिया का इलाज अगर समय पर न किया जाए, तो यह बीमारी जान भी ले सकती है। इस बीमारी से बचने के लिए टीका ज़रूर लगवाना चाहिए।
डॉ. अरुणेश कुमार (सीनियर कंसल्टेंट- पल्मोनोलॉजी एंड हेड-पारस चेस्ट इंस्टिट्यूट, पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम) का कहना है, “जब इंफेक्शन की वजह से बच्चों और वयस्कों की मौत की बात आती है, तो निमोनिया एक ऐसी संक्रामक बीमारी है, जो पूरी दुनिया होने वाली ज़्यादातर मौतों के लिए ज़िम्मेदार है। मौत का यह आंकड़ा 2.5 मिलयन है, 2019 में इस आंकड़े में 672,000 बच्चे शामिल थे। इस साल कोविड-19 महामारी के कारण मौत का आंकड़ा 75% तक बढ़ा है। निमोनिया के बारे में जागरूकता की कमी और चिकित्सा सेवाओं के विघटन के कारण यह 2.3 मिलियन से अधिक बच्चों की मृत्यु का कारण बन सकता है। यह मौते 35% निमोनिया से और बाकी न्यूबॉर्न सेप्सिस से होगी। हमे रोकथाम की सावधानियों को सख्ती से लागू करने और इंफेक्शन के खिलाफ रणनीतियों को मज़बूत करने की ज़रूरत है। मास्क पहनना, सोशल डिस्टेंसिग अपनाना और हाथ धोना बहुत ज़रूरी है। इससे ट्रीटमेंट और डॉयगनोसिस में सुधार देखने को मिलता है।