2010 में फ्लिपकार्ट ने देश में पहली बार कैश-ऑन-डिलीवरी के विकल्प की शुरुआत की थी जिसने ई-कॉमर्स को जबरदस्त बढ़ावा दिया. इसके बाद उन लोगों ने भी ऑनलाइन शॉपिंग शुरू कर दी जो इससे पहले संदेह की वजह से पारंपरिक खरीददारी पर निर्भर रहते थे.
हालांकि आरटीआई के जरिए पूछे गए एक सवाल से पता चला है कि थर्ड पार्टी वैंडर द्वारा की जाने वाली कैश-ऑन-डिलीवरी अवैध हो सकती है. धर्मेद्र कुमार ने आरबीआई से पूछा कि ‘फ्लिपकार्ट और अमेजॉन जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों का ग्राहकों से कैश कलेक्ट करना और उसे अपने मर्चेंट्स में बांटना क्या पेमेंट्स सेटलमेंट्स सिस्टम्स ऐक्ट, 2007 के तहत आता है? क्या इस कानून के मुताबिक वे पेमेंट सिस्टम की परिभाषा और सिस्टम प्रोवाइडर के दायरे में आते हैं? अगर हां तो क्या कानून के सेक्शन 8 के तहत ये अधिकृत हैं?’
सवाल के जवाब में शीर्ष बैंक ने कहा कि फ्लिपकार्ट और अमेजन जैसी इ-कॉमर्स कंपनियों को पेमेंट्स सेटलमेंट्स सिस्टम्स ऐक्ट, 2007 की धारा 8 के तहत अधिकृत नहीं किया गया है. इकोनॉमिक टाइम्स ने बताया कि “आरबीआई ने इस संबंध में कोई विशिष्ट निर्देश जारी नहीं किया है.”
कुमार ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक की प्रतिक्रिया से पता चला है कि लेनदेन को नियंत्रित करने वाला कोई स्पष्ट कानून नहीं है और शीर्ष बैंक को यह सुनिश्चित करने के लिए एक प्रणाली होनी चाहिए ग्रे क्षेत्र का कंपनियों द्वारा शोषण न किया जाए.
बता दें कि कैश ऑन डिलेवरी में कंपनियां थर्ड पार्टी द्वारा कैश एकत्र करती हैं. इसमें ग्राहक तब भुगतान करता है जब उसतक उत्पाद पहुंच जाता है.
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