मौद्रिक नीति की पिछली तीनों समीक्षाओं में रेपो रेट घटाने वाले आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास का संकेत है कि आने वाले दिनों में कर्ज और सस्ते हो सकते हैं। इसके पीछे एक वजह तो यह है कि केंद्रीय बैंक ने गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) की फंड की कमी को दूर करने के लिए काफी कुछ किया है और अब पूरे बैंकिंग सेक्टर में कर्ज देने के लिए पर्याप्त फंड है।
दूसरी वजह यह है कि अब भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की तरफ से रेपो रेट (इस दर के आधार से ही होम लोन, आटो लोन आदि की दरें तय होती है) घटाने का फायदा तेजी से बैंक ग्राहकों को देने लगे हैं। गवर्नर ने बैंकों से आग्रह किया कि जिन्होंने दरों में पिछली कटौतियों का फायदा अब तक ग्राहकों तक नहीं पहुंचाया है, वे जल्द ब्याज दरों में क्षमतानुसार कटौती करें।
दास ने उक्त संकेत वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के साथ बजटीय प्रावधानों पर हुई बैठक के बाद संवाददाता सम्मेलन में दिए। उन्होंने कहा कि पहले आरबीआइ की तरफ से रेपो रेट में कटौती का असर बाजार पर छह महीने में दिखाई देता था। लेकिन अब यह असर दो से तीन महीने में दिखाई देने लगा है। वैसे, पिछली दो समीक्षाओं (अप्रैल व जून) को मिलाकर 50 आधार अंकों की कटौती की गई है जबकि बैंकों ने 20 आधार अंकों तक की ही कटौती की है।
अब उम्मीद है कि ग्राहकों को कर्ज कटौती करने में बैंक और ज्यादा तेजी दिखाएंगे। कर्ज की दर में कटौती की एक सूरत इसलिए भी बन रही है कि बैंकिंग सिस्टम में कर्ज देने के लिए पर्याप्त रकम है। साथ ही एनबीएफसी की दिक्कतों को दूर करने में भी काफी कुछ किया जा रहा है। बजट में भी एनबीएफसी की फंड की समस्या दूर करने के उपाय किए गए हैं, जिसका बड़ा असर होगा। बजट में एक और बड़ा फैसला करते हुए वित्त मंत्री ने एनबीएफसी को लेकर आरबीआइ के नियमन अधिकारों को और सशक्त कर दिया है।
दास ने बताया कि एनबीएफसी और हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के नियमन का अधिकार आरबीआइ को मिला है। अब आरबीआइ इस बारे में सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए नए नियमों की घोषणा करेगा। उन्होंने बताया कि हाल के महीनों में एनबीएफसी की जो कुछ समस्याएं सामने आई हैं उसे देखते हुए बड़ी एनबीएफसी की काफी करीबी निगरानी की जा रही है। इसके अतिरिक्त गवर्नर ने कहा कि आरबीआइ विदेशी बाजारों से पूंजी जुटाने के लिए बांड जारी करने के मुद्दे पर सरकार से जल्द बातचीत शुरू करेगा। उन्होंने कहा कि राजकोषीय संतुलन को संसाधन जुटाने के लिए घरेलू बाजार पर निर्भरता कम होगी।